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उप्पन्न हिरन्नवइत्ति कन्न तहो वारुणि महरा चारुगत्त वारुणि विमिगायणपुत्ति पुत्तु हउँ भद्दमित्तु रयणाइँ जासु काऊण नियाणु प्रसन्नवा भत्तारु तुहारउ सीहसेणु
सिरिभूइ नाउ डसिऊण ताउ सो करिवरु पालियपरमनिठु तें कुक्कुडसप्पें पपियंतु सहसारग्गि सिरिपहविमाणि धम्मिल्लु पुरोहितहिँ मरेवि तें मारिउ कुक्कुडसप्पु पाउ एत्तहि सियाल भिल्लेण तासु ढोइय वणिमित्तहो वणिवरासु
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सिरिचंद्र विरइयउ
आयन्निवि एउ विसन्नचित्त संबोउि वइयरु कहिवि पुत्तु उवसंतएण सावयवयाइँ काले करेप्पिणु कालु सग्गि वेरुलयविमाणि मणोहिरामु सुज्जहु नामें तहिँ जि देउ किं भणमि पहंकरघरणिवासि 'उवरिमवज्जहे सीहचंदु
धत्ता - इह
[ ३२. १४. ५
पोयणपुरि पुनससी दिन्न ।
ताहि गभि तुहुँ रामयत्त । हु पुन्नचंदु तुह गुणहिँ जुत्तु । देवावियाइँ पहूँ जणिउ तोसु ।
घत्ता - सो मइँ तहिँ दिठु कुद्धचित्तु संबोहियउ । चिरजम्मु कवि देवि वयइँ सावउ कियउ ||१४||
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उसी चंदु त तणउ मा । उट्टे सवर्ण करेणु ।
कालयवणि चमरु तिरिक्खु जाउ । केसरिसरितीरे कयाइ दिट्ठ । मारिउ खाएप्पिणु पंकि खुत्तु । हुउ सिरिहरु देउ गोवमाणि । उ वानरु चिरवइरं सरेवि । वालुयपहा णारइउ जाउ । प्पणु विसाणमोत्तिय गयासु । तेण वि छणयंदनरेसरासु ।
घत्ता – तुह पुत्तें तेण मंचउ दंतूसलहिँ किउ । मोत्तियहिँ विहारु कंठि विहसणु अल्लविउ ॥ १५ ॥
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गय पंचाणणपुरु रामयत्त । संजाउ वविसायजुत्तु । अंगीकयाइँ हयभवभयाइँ । सहसारि हूउ सोहासमग्गि । हुउ सुरवरु सुंदरदत्तनामु । हुउ रामयत्त नवतरणितेउ । रूवेण रूवसोह्ग्ग रासि । सुंदरसरीरु हूयउ हमिदु । भरहखेत्ति वेयडगिरे । दाहिणसेढी प्रत्थि धरणि तिलयानयरे ॥ १६॥
जंबूदीव
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