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________________ ३०८ ] सिरिचंदविरइयउ [ ३०. ४. ६मइँ साहुसमीवि सुणेवि धम्म चउदसिहँ विवज्जिउ हिंसकम्मु । तं खमहि पडिक्खहि अज्जु एक्कु निसुणेवि भणइ नासियनिरिक्कु । हउँ रायाएसें आउ एत्थु । पइँ मुयवि न जामि समुच्चयत्थु । सहुँ तलवरेण ता तत्थ पाणु गउ जत्थच्छइ रिउतिमिरभाणु । घत्ता-तेण नवेप्पिणु विनविउ दरियारिकुलक्खउ । साहुसमीवि पइज्ज मइँ पहु लइउ दयावउ ।।४।। तं तुझ पसाएँ गुणगणाल निव्वाहमि मेल्लहि सामिसाल । मायंगहो कवणु वयाहियारु जइ केसवसिवकमलासणाहँ वउ लइउ होंतु दुहनासणाहँ । ता मेल्लिउ होतउ निच्छएण विनडिउ तुहुँ खलखवणयवएण । पेच्छह उव्वरइ न को वि ताहँ चंडालु वि लाइउ नियवयाहँ। ५ किउ अज्जु अहिंसावउ पहाण. ................. सुसुमार दहि घिवहि निसुंभहि अनयकार । ता मेंढयचोरें भणिउ पाणु मइँ मारिवि रक्खहि निययपाणु । अवरेण वि केण वि हउँ निरुत्तु मारेवउ ता पाणेण वुत्तु । घत्ता-जं भावइ तं होउ महु पइँ तो वि न मारमि। १० गुरुवयणें अंगीकरिय सपइज्ज न हारमि ॥५।। सुसुमार तं सुणिवि तलारें चोरमारि अवरु वि जो खवणयवयइँ लेइ पुरि भामिवि एम भणंतएण तहिं चित्तु चोरु मयरेहिँ खर्ध तहो तेत्थ सहेज्जउ जाउ धम्मु तहिँ सीहासणि ठविऊण पाणु किउ दुंदुहिसदु पसंसमीसु निसुणहो भो जणहो मुणीहि दिन्नु सो इहपरलोयविवेयहीणु पुरि पिट्टिज्जंतु जियंतएहिँ बंधेवि स परदव्वावहारि । सो एवंविह प्रावइ लहेइ । निय सुंसुमारदहु दो वि तेण । पुणु जणहो नियंतो पाणु छुछु । किउ तेण वलाहिउ पुलिणु रम्मु। ५ पुज्जिउ सुरेहिँ पत्तो सुमाणु । तहिँ अवसरि भूयहिँ भूवईसु । जो छंडावइ वउ मंदपुन्नु । पावइ अवत्थ एरिस निहीणु । भामेप्पिणु एम भणंतएहिँ। १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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