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________________ १६६ ] सिरिचंदविरहयउ [ १७. १६. ४का वि पसन्न नवकुसुममाल नवदिट्ठि नाइँ ढोइय विसाल । कासु वि मंगलु गायंतियाए उत्तारिउ प्रारत्तिउ तियाए । क वि देइ महासइ धूवगंध भत्तारहो भासइ होंतु अंध । तुह सत्तु असेस वि खयही जंतु चितविय मणोरह संपडंतु । इय लद्धासीघोसण सगव्व नीसरिय सुहड सन्नहिवि सव्व । घुसिणारुणु कवयालंकियंगु सोहइ समेहु नं नवपयंगु । चंदणधूसरु सकवउ नरिंदु नं को वि सलंछणु पुण्णिमिदु। १० घत्ता-पादेवि चंदबलु गहबलु जोइणिबलु भूबलु । सहुँ राएँ चलिउ कयकलयलु नीसेसु वि बलु ॥१९॥ दीसइ बलु पवलिहे नीसरंतु कव्वु व कइवयणहो मणु हरंतु । सहरिसु थोवंतरु जाइ जाम संपत्तउ परबलु पवलु ताम । अन्नोन्नु निएप्पिणु रणरसाइँ धावियइँ बलइँ अमरिसवसाइँ । रह रहहँ तुरंग तुरंगमाहँ तंबेरम तह तंबेरमाहँ। पच्चारिवि नरवर नरवराहँ पहरणकर किंकर किंकराहँ। सहरस पहुकज्जे भिडंति जाम पोमावइ वत्त सुणेवि ताम । संपत्त तत्थ कयकलयलाहँ थिय अंतरालि दोहँ वि बलाहँ। पच्चारिय सयल वि नियनियासु जो पहरइ सामिहे आण तासु । किं जुज्झह बुज्झह करह नेहु पिउपुत्तहँ संगरु कवणु एहु । घत्ता-जेमागय जिम जणिउ जिह वड्ढिउ जाउ जुवाणउ । तिह सयलु वि कहिउ वइयरु जिह जायउ राणउ ॥२०॥ १० भो धाडीवाहणराय एहु नामें करकंडु कयारितासु निसुणेवि एउ आणदिएण करकंडु वि जामज्ज वि न ताउ पणवंतु पुत्तु परमेसरेण चाणूरकंस जमगोयरेण हुउ पुण्णहिँ रायहीं पुत्तजोउ तुह नंदणु पयणियजणसणेहु । धम्मावयारु गुणगणनिवासु । परिहरिउ दंति पुहईपिएण । उत्तरइ ताम पायत्थु जाउ । आलिंगिउ नवनेहो भरेण । रुप्पिणिसुउ व्व दामोयरेण । आणंदे पणच्चिउ बंधुलोउ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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