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________________ १७. १४. १३. Î कहको घत्ता - सरिवि पुरउ सहहे पहुनिंदावायपलित्तें । पारद्धउ भणहुँ दूएण दूयगुणजुत्ते ||१२|| १३ विहि जवि किंपि मूढ मुणेपिणु अप्पपरस्स सत्ति किं मागहाइदेव धरित्ति भणु तेण ताण ते पइसरंति महु हासउ दिज्जइ नवर तेण जोइंग किं पसरियकरासु तु गोप्प व्व सो जलनिहाणु भणु एवड्डतरु समउ जेण अहवा लइ तुज्झु न दोसु कोइ को विसes दूसह सामिघाय हो वयणेण विमुक्कसत्ति आरुट्ठ दुट्ठवयणइँ भणंत १. घत्ता- हम्मउ न दूउ अन्नाउ एहु लइ मेल्लि मेल्लि मा धरहि एंतु रुहिरासत्र रक्ख पियतु भूय मा वार वार विप्पियइँ जंपि - प्रसन्नम्म खप विवरीय चिट्ठ मइविब्भमु । पेच्छह कीडिय किं न हवइ पक्खविणिग्गमु || १३|| इ इच्छहि सेवा थुइ पणामु पसरु वणु मेल्लिवि रज्जु भोउ इयरहूँ पर महुँ कोयंडु तासु दूण भणिउ जिह नियघरम्मि Jain Education International १ भाविइ । १४ fi चवहि प्रालु माणाहिरूढ । जो कुत्रइ तासु निच्छउ भवित्ति । चक्कहिँ दिन निव्वाहवित्ति । बलु जासु तासु सयल वि डरंति । जं वग्गइ मसउ समं गएण । पुज्जइ तेण दिवायरासु । परमाणु तुहुँ सो गिरिपहाणु । किं किज्जइ दप्पु समाणु तेण । सव्वहो मासु विणासे होइ । घत्ता-पहरइ पवर भड मुहमुक्कहक्कलल्लक्क । गयकायरे सरपिहियक्क || १४ || afsanबंध [ १९३ For Private & Personal Use Only १० ५ ५ संभालहि सं मा मरहि राय । पक्खुहिय सव्व सामंत मंति । पहुणा विणिवारिय उत्थरंत । बोल्लउ जं भावइ' तं दुहु | धवु लहर अज्जु भुक्खिउ कथंतु । राएण भणिउ जज्जाहि दूय । नियसामि संघ हि एउ गंपि । ता होहि साहु निमुक्ककामु । झायहि जिणु चित्ते धरेवि जोउ । पणवइ रणे बाणहिँ जणइ तासु । १० जंपइ किं तिह कोइ वि रणम्मि । १० www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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