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तं निप्रवि नराहिव विहियखेउ न सुहाइ किंपि पेक्खिवि प्रवत्थ
संजाउ परोप्परु रम्मु पेम्मु अन्नोन्नुब्भासियदोसजालु एक्aहिंदिणि देवि भगवसत्थु निसुणेप्पिणु पइँ गरहिय सपत्ति थिउ मोणु करेप्पिणु तुहुँ समन्नु तहिँ दिट्ठ महामुणि मयणतासु दट्ठूण पहूउ पहूउ खेउ कहिँ दिट्ठ प्रणिट्ठ विमुक्कलज्जु इय चितिवि पइँ पंचाणण व्व मुणिमाहप्पेण तमेण मुक्क आलोइवि साण अलग्गमाण
धत्ता - विरएप्पिणु विन्नाणु सयलकलागमसारी । आणि वेल्लिंण तेण हुय महएवि तुहारी ॥ १४॥
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सिरिचंदविरइयउ
पणवेष्पिणु समपरिणइसणाहु तेण वि सुहदुहगइगमणहेउ निसुणेपिणु सासयसुहनिहाणु जो विउ साहुहरणि' भाउ afgवित निरु निम्मलमणेण गुरुसंवेगेण मणोहिरामु भुवणवइपणयपायारविंदे तिन्नि जि संवच्छर अट्ठ मास एत्ति प्रच्छंतितुरि काले सीमंतनर दुक्खो खणीहिँ १६. १ 'वहुकरणि ।
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पवियंभिउ तुह मणे मयर |
गउ वरमइ अभयकुमारु तत्थ ।
धत्ता — सरसमूहु कुसुमोहु होप्रवि पडिउ न लग्गउ । तुहुँ मुणिमहिम निएवि उवसमभावि वलग्गउ ॥ १५॥ १६
[ १४. १४. ६
अहवा को लंघइ पुव्वकम्मु । उ धम्मविवाएँ विहि मि कालु । खब्भालिउ किउ आणिवि प्रणत्थु । ता कहिय ताप दिट्ठत जुत्ति । नहिँ दियहम्मि गोसि रन्नु । नामेण जसोहरु जसनिवासु । पारद्धिहिँ एहु लाहहेउ । खलु खवणउ खाउ कयंतु अज्जु । निम्मुक्क पधाइय सुणह सव्व । काऊ पयाहिण पुरउ थक्क | पुणु रोसवसेण विमुक्क वाण ।
संथु पयभत्तिभरेण साहु | उएसिउ धम्माहम्मभेउ । पडिवन्नउ खाइउ सद्दहाणु । तं सत्तमनिर निबद्धु आउ । पुणु बद्ध पढमि दंसणबलेण । एत्थज्जिउ पइँ तित्थयरनामु । निव्वुइपरे सम्मइजिणवरिंदे | दस अवर वियाहि पंच दिवस । पंचत्तु हवेसइ तुह वयाले । जाएव पइँ पढमावणीहिँ ।
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