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________________ ११४ ] सिरिचंदविरइयउ [ ६. १४.६अहव सुदंसणु चक्कु सुभूमहो चक्किहे अतुलपरक्कमभूमहो । जीवा तक्काइय तहो रक्खण जक्खदेव पालियसेवाखण । पुणु पुत्वावत्थान असेसह कम्महँ नोकम्माण पएसहँ । एयाणं कयाइ मेलावउ होइ न माणुसभवहु सुहावउ । घत्ता-इय दुल्लहु मणुयत्तु पावेप्पिणु जो मूढउ । न करइ धम्मु दुरंते अच्छइ सो भवे छूढउ ॥१४।। ॥चक्कक्खाणं गदं ॥७॥ १५ सुम्मइ मज्झिमलोग महंत सव्वदीवसायरपज्जंता । अत्थि सयंभूरमणु पहाणउ भीयरु रयणायरु अपमाणउ । चम्मु वि तप्पमाणु तहिँ कच्छउ निवसइ सलिले अईव अतुच्छउ । नामि नंदु एक्कनयणुल्लउ बहुपियपुत्तमित्तसयणुल्ल उ । तत्थेच्छाश तेण अच्छंतें कहमवि बहुकालेण समत्तें।। अजिणहो छिदें रवि आलोइउ किमिणं नियमण विभइँ ढोइउ । प्राणिवि तं अच्छरिउ ससयणहँ दंसइ जा विप्फारियनयणहँ । ता तं नट्टउ नेव नियच्छइ अह कहमवि कयाइ सो पेच्छइ । जीउ वि पुणु वि वेइ गुणसासणु नियइ नरत्तसूरु तमनासणु । । कुम्मक्खाणं गदं ॥८॥ पुव्वसमुद्दे समिल अवरन्नवि जूउ निहित्तउ गुरुवेलारवि। १० ताण कयाइ पुणो वि पयत्तें संगम जीवो नउ मणुयत्तें ।। । जुगक्खाणं गदं ॥६॥ सव्वचक्कवट्टीण पहाणउ दंडरयणु चउहत्थपमाणउ । कय परमाणुय तहो भेएप्पिणु गय वि कयावि मिलंति पुणप्पिणु । न मिलइ सन्वभवंतरसारउ माणुसजम्मु तिलोयपियारउ । ॥ परमाणु-अक्खाणं गदं ॥१०॥ घत्ता-दसणु नाणु चरित्तु मुणिवि एउ अब्भासह । अइदुल्लहु मणुयत्तु पावेप्पिणु म विणासह ॥१५॥ ॥ इमे दस दिट्ठता मणुयलंभस्स ॥ जह बालो जंपंतो कज्जमकज्जं च उज्जुयं भणदि । तह आलोचेदव्वं माया मोसं च मोत्तूण । [भ० प्रा० ५५३] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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