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________________ ८. २३.३ ] उड्डतहँ कंपइ भइण भाणु पयभारें महि पायालु जाइ ता बप्पा विहे नंदण सरिवि सरिवि नहि उल्ललेवि पडिवक्खनिसागमने सरासु घत्ता -- रणसरवरि सिवरचंचुय नृवहंसें सरलच्छिद । दसणावलिकेसरु सिरिनिलउ तोडिवि पाडिउ सिरकमलु ॥ २१॥ वस्तु - निह दुद्धरे श्रमरवरधीरे कहकोसु गंगाधर सुरधणु पहिठ्ठ जाणे विणु खलगलकालवासु विज्जाहर सयल गयावलेव वेन विखगसेढिउ वसि करेवि सोहण निहाण रयणइँ लहेवि हेला सयल साहिवि धरित्ति परियरियउ पउरबलेण झत्ति परिपुण्णमणोरहु पुण्णवंतु आलोय मायरि सायरेण नियनंदणरिद्धि निएवि माय २२ गंगाधरे सुरवरहिँ चक्कवट्टि संउ नहंगणे । तनहु हण एहु को किर रणंगणे || धन्न तिहुयक्कविजइ तुहुँ पर एक्कु निसीह । अरिपव्वयपवि भुवणयले को पावर तुह लीह ॥ Jain Education International निवडंतहँ फणिवइ मुयइ ठाण । हक्कत फुट्ट भुवणु नाइँ | कयबहुभडथडकडमद्दणेण । सिणा सवत्तु सहसा खलेवि । तो विज्जाहरचक्के सरासु । वस्तु को विपसवणवियणवियलाहे २२. १ खयराय पहुत्त । घत्ता--ता लच्छीमइहे मणोरहउ चूरेवि रहु उवसामियउ । जिणसंदणु नियमाय हे तणउ परमविहूइ भामियउ ||२२|| २३ परमुच्छवेण नियउरि पठ्ठे । चक्कवइ समुज्जलजसपयासु । किंकर देव विविहियसेव । पडिवक्खमडप्फरु अवहरेवि । ससुरहो खयराण पहुत्तु' देवि । परिणिवि मयणावलि तवसिपुत्ति । परमेसरु दूरोच्छलिय कित्ति । सत्तम दिणम्मि नियनयरु पत्तु । नं नवमियंकतणु सायरेण । सराएँ विभियचित्त जाय । उप्पज्जइ जसधवलु जणियाहे जयसिरिविहसणु । हरिसेणसमाणु सुउ सुयणसरणु पिसुणयणदूसणु ॥ [ १०५ १० For Private & Personal Use Only १५ ५ १० १५ www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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