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________________ ५. ५. ६. ] , कहको पभणिउ प्रालिहहि विचित्तयरु इह चित्तु पयत्तें चित्तयरु । ग्रहु वयणु सुणेप्पिणु चित्तयरा भासंति समग्ग वि जमलकरा। घत्ता-अम्महँ मज्झे तहाविहु को वि हु नत्थि नरु । जो प्रायही अणुरुवउ चित्तु विलिहइ वरु ॥३॥ २० इह विस्सकम्मु सयमेव जइ आलेवइ चित्तु विचित्तमइ । नासिज्ज इ अम्हहिँ भित्ति परा कुकईहिँ सुकव्वहाँ जेम वरा । जइ कज्जु विरूवें तो करहुँ पहु तुज्झाएसो नोसरहुँ । पूरउ जि मणोरहु नरवरही तं सुणिवि विसज्जिय ते घरहो । सव्वण्हुपायपंकयभमरु निल्लोहसहावु पसिद्धिपरु । विसकम्मु व माणुसवेसधरु नामें चित्तयरु विचित्तयरु । नावइ. इहु पुण्णहिँ पेरियउ सयवइयरहरिसाऊरियउ । एक्कहिँ दिणि गुणहिँ विराइयउ उज्जेणिहिँ होंतु पराइयउ । आवेप्पिणु पावतावदवणे उत्तरिउ सुलोयणु जिणभवणे । तहिँ दिलु नमंसिउ जिणधवलु थुउ ण्हविउ पपुज्जिउ पहयमलु । १० सिरिचंदु सूरिसंघ सहिउ पुणु पणउ पयत्तें मयरहिउ । पुच्छिउ मुणिणा जाणावियउ तेणप्पउँ नियगुणु दावियउ । घत्ता-वक्खाणंतु महामुणि सो सोयारजुप्रो । लिहिउ निएवि अणोवमु विभउ कसु न हुप्रो ॥४।। जिणमंदिर को वि अउव्वु नरु रिसिरूउ तेण तहिँ प्रालिहिउ तं दिटुं जेण न माइ सयं इय अन्नहीं अन्ने साहियउ अणवरउ निहालइ एइ तहिँ राएण वि किउ तत्थागमणु तं चित्तु सचित्तु व जोइयउ पुच्छिउ मुणिना, साहियउ कि एउ सव्वविन्नाणघरु एत्थायउ जणमणचोज्जकरु । नावइ सिट्ठारि संविहिउ । तो चक्खुफलं एमेव गयं । आयण्णेवि जणु रहसाहियउ । संपत्त वत्त नरनाह जहिँ। नुउ जिणु ससंघु गणि गुणभवणु । पुणु वार वार पोमाइयउ । इउ एण सुमइणालेहियउ। पुहईस एहु गुणपोमसरु । ५. १ ‘णालोहियउ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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