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________________ २४ ] अवरु वि उवगूहणक्खाणउ चउविहसुरनिकायमज्झत्थें मिच्छाधम्मकरिंदमइंदें धम्मस्वण करतें संतें भूयलि राया सेणिय सन्निउ तं निसुणेवि प्रसद्दहमाणउ निप्रवि नराहिउ एंतु ससेणउ चामरवाहिहाणु विक्खायउ ता तहिँ मगरु संपत्तउ गुरुहारज्जहे मीणप्पंतउ मइँ दासें होंतेणाहम्मउ वियाणिय निम्मलराउ मणेण धराहिव एत्तियमेत्तहिँ चेव विरईहे कराउ लएवि महावइ गेहि नवेवि निएविणु तारिसु ताण विधम्मु मुवि विड्ढि नदिणम्मि सहदलाउ नियंकधराहु विन्नि सव्वहँ रायसुयाहँ नवेपणु निव्विदिगिछमणेहिँ चडाविउ ताउ लएवि ससीसे सिरिचंदविरइयउ घत्ता - जइ कज्जु भसेहिं तो अच्छह होएवि हउँ Jain Education International जियसत्तुचक्केण सुयसामिचक्केण हम्ह जीवस्स चेयण तणु जेम तं वयणु निसुणेवि कुलकुमुयचंदेण ts निहिलजियनाहजिणमुद्दधारस्स मइँ मुवि विदिगिछ नवयारु किउ तासु ५ कहमि समुज्झियदोसुट्ठाणउ । सुयनाणो हिनाणसामत्थें । रंजण कहा सुरिंदें । फेडियपुच्छयजणमणभंतें । दिसम्मत्तु भणेपिणु वन्निउ । एप्पिणु नहि चोइयसविमाणउ । मग्गसरोवर कड्ढियमीणउ । सुरवरु जालहत्थु रिसि जायउ । जइ प्रालो प्रवि जालु घिवंतउ । वेपणु विणण पउत्तउ । जुज्जइ तुम्हइँ एउन कम्मउ । तुम्हइँ पासत्थ पहु । संपाsमि मच्छवहु ||५|| ६ घत्ता - तं निग्रविणिवेण भणिय सव्वसामंतवरे । मुद्दि किया कि तुम्हहिँ विरुयाउ सिरे ॥ ६ ॥ ७ [ ३.५. १ उत्तु पवंचु मुणिदें तेण । पण मी हिँ नहिँ नेव । करे प्रणिमेस सभिच्चहो देवि । विसज्जिउ संजउ संजइ वेवि । दुइ लोउ दियंबरधम्मु । णिदंसणु संदरिसाविउ तम्मि । करेपिणु मुद्दउ जीवणु ताहु | [ पुरीसविलित्त कारिवि ताहँ ] करेवि कथंजलि सव्वजणेहिँ । ससेहरे चंपयवास विमीसे । * For Private & Personal Use Only ५ १० ५ १० विणण संलविउ सामंतचक्केण । संपुज्जणिज्जादिवंदणिय फुडु तेम । विहसेवि ते भणिय सेणियनरिंदेण । गुरुविण पुव्वेण मच्छंधिथेरस्स । ता तुम्ह किं कारणं करहु उवहासु । ५ www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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