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________________ २० ] सिरिचंदविरइयउ [ २. १७. ७हरियंकुरु जीवाणुवरि वुत्तु आयमि न जाणु जइवरहँ जुत्तु । भासइ दिउ जइ ए जीव होंति तो किं न चलंति न चलवलंति । पच्चक्खपमाणि किमारिसेण करि कंकणे व किं आरिसेण । घत्ता-तहो वयणेण अयाणमणु प्रायमुत्तु न पमाणु करंतउ । ताइँ वि संचूरंतु गउ काणणतरु करिवरु व पमत्तउ' ॥ १७ ।। १८ अग्गण गंतूण विसुद्धबुद्धि स बइठ्ठ, करेवइँ कायसुद्धि । इयरेण वि तक्खणि किय धरित्ति भप्पोवलवियडिविहीण झत्ति । विज्जाप करेप्पिणु तोयनासु । मग्गंतहो कुंडिय दिन्न तासु । जा जोयइ ता तहिँ नत्थि अप्पु सन्नाश समोणे भणिउ विप्पु । मुणिसन्न निएप्पिणु भणइ धुत्तु कर जोडिवि मायाभट्टपुत्तु । ५ तुम्हइँ मुएवि गउ कहिमि नेव मइँ काइँ कियउ सलिलेण देव । पुणरवि वियडिहिँ कय सन्न तेण वुच्चइ जाणतेण वि दिएण । हउँ सन्न न वुज्झमि मूढ़भाउ वयणेण पयासह करमि साउ । कि मोणे संदेहावहेण ता बोल्लिज्जा मिच्छावहेण । आणहि कयपयडिमलावसाणु इट्टालु रक्ख अह सुक्कछाणु। १० _ घत्ता-आलु पलोएवि चउदिसउ विप्पेणावेवि पउत्तउ । मइँ सव्वु वि पहु जोइयउ पर किं पि न दिठ्ठ निरुत्तउ ।। १८ ॥ . किं अन्नें एएँ निम्मलेण वरमट्टियाण जमुणाजलेण । किज्जउ सउच्चु ता भणइ साहु एत्थत्थि पउरजीवावगाहु । फसणेण सरीरहो ते मरंति कज्जेण तेण जइ परिहरंति । जइ अत्थि वि तो दीसहि न काइँ प्रायण्णिवि वडुयपयंपियाइँ । सयमेव तत्थ जाएवि जाम आलोइय नियइ न कि पि ताम। ५ सव्वण्हुवयणु अवगण्णिऊण तो भणिउ सव्वु मणि मन्निऊण ।। अप्पासुयपुहइए नइजलेण किउ सउचु तेण सहसा जलेण । भवसेणु भणेवि अभव्वसेणु खेयरु परवित्तसहावथेणु । गउ कंचीपुरु मुणिगुत्तपासु पणवेवि निवेइय वत्त तासु । घत्ता-जइ देवायलु संचलइ पच्छिमेण उग्गमइ दिवायरु। १० ___ तो पहु तुम्ह वाणि चलइ अहवा जइ सूसइ सायरु ॥ १९ ॥ १७. १ करि व पमत्तउ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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