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________________ ग्रीष्मवर्णनम् इह मुणिवराण णिकंप-नियम-पडिबंध - संधिआलोआ । झाण-विरमम्मि जाअंति णवर मलिणा गिरि-गुहाओ ।। ६४२ ॥ इह मुक - पल्ललुम्मुह-पसण्ण-महिसावलोइआ होंति । सेल - सिहरं तरिज्जत-रवि-अरा दिअस-परिणामा || ६४३ ॥ छाया - णिव्वाविअ - सद्दलाण भई दिणावसाणाण । अर - विणिअत्त- गोवी - परिगीअ-वर्णत- मग्गाण ॥ ६४४ ॥ इह पल्ली-धूमुब्भेअ-धूसरिज्जंत-कुंज-रमणिज्जा । होंति गिरि- अड अ-दंडा णिसागमारंभ - गंभीरा ॥ ६४५ ॥ उअयच्छविं मुअंतो पुराण करि दंत - पिंगल मऊहो । इह सोहइ सिहरासत - मंडलो जामिणी - णाहो || ६४६ ॥ धाराहिसित्त-णव- कंदलाण इह ता चलंति मालाओ । जरढ-कलविंक - गल-मंडलाहिलीणा जलहराण ॥ ६४७ ॥ इह सो तरुल-वसुआअ - सलिल-संभिण्ण- केसरामोओ। परिणअ-किण्ण-सुरा-अंध - गाढ - महुरो विणिम्महइ ॥ ६४८ ॥ इह मुनिवराणां निष्कम्पनियमप्रतिबन्धसंधितालोकाः । ध्यानविरमे जायन्ते केवलं मलिना गिरिगुहाः || ६४२ ॥ इह मुक्तपल्वलोन्मुखप्रसन्नमहिषावलोकिता भवन्ति । शैलशिखरान्तरीयमाणरविकरा दिवसपरिणामाः ॥ ६४३ ॥ छायानिर्वापितशाद्वलानां भद्रं दिनावसानानाम् । नगरविनिवृत्तगोपीपरिगीतवनान्तमार्गाणाम् || ६४४ ॥ इह पल्लीधूमोद्भेदधूसरायमाणकुञ्जरमणीयाः । भवन्ति गिरिकटकदण्डा निशागमारम्भगंभीराः ॥ ६४५ ॥ उदयच्छविं मुञ्चन् पुराणकरिदन्तपिङ्गलमयूखः । इह शोभते शिखरासतमण्डलो यामिनीनाथः ॥ ६४६ ॥ धाराभिषिक्तनवकन्दलानामिह ताश्चलन्ति मालाः । जरठकलविङ्कगल मण्डलाभिलीना जलधराणाम् ॥ ६४७ ॥ इह स तरुतलशुष्क सलिलसंभिन्नकेसरामोदः । परिणतकिण्व सुरागाढमधुरो विनिर्गच्छति ॥ ६४८ ॥ ६४२. गुहाहोआ for गिरिगुहाओ. for णिसागमा ६४६. सिहरासन्न कण्ण', 'गरुओ for 'महुरो. ग. ७ Jain Education International ९७ ६४५, कडय° for अडअ. जलयागमा ६४७ वलंति for चलंति. ६४८. कट्ठ for For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001364
Book TitleGaudavaho
Original Sutra AuthorVakpatiraj
AuthorNarhari Govind Suru, P L Vaidya, A N Upadhye, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1975
Total Pages638
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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