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________________ सरोवर्णनम् सुरहिमिह गंधमासिसिर - बाल - मज लुग्गमाण जंबूण | म अरंदमारविंदं च इह समीरो पसारेइ || ५१६ ॥ इह ते मअ-कलकाअंब -कंठ-कंदलिअ-सारसकंदा | सोहंति वलाआलीढ-णील- णिउला तडुदेसा ॥ ५१७ ॥ सुसिरोसरिअ सकद्दम- जड-जल-लव- भिण्ण-भंग-रस- सारो । इह सो परिलिअ - कसाय-गंठि-गंधी मुणालाण ॥ ५१८ ॥ अणुण्ण- णिग्गमुक्खित्त-विसम-दल-संणिवेस- णिविडाओ । इह ता संचार क्खलिअ - कुक्कुहा रण्ण णलिणीओ ।। ५१९ ।। मोह - र सिआई इह णिव्वडति णह घोलिराण कुरराण । उव्वत्त- मीण- ताडिअ -घण - णलिणि दलासु सरसीसु ॥ ५२० ॥ इह वायस - सेविअ - कीडइल्ल-वसुआअ - चिविड- सालूरा । जालिअ-कड्रिअ-संबूअ - सेवला तीर - पेरता ॥ ५२१ ॥ उव्वेल्लेइ समीरो कलह-कररगावसोण-मूलाई । संखाअ-फेण-फुड-पिच्छिलाई इह णलिणि-वत्ताई || ५२२ ॥ इह स सुरभिमिह गन्धमाशिशिरबालमुकुलोद्गमानां जम्बूनाम् । मकरन्दमारविन्दं चेह समीरः प्रसारयति ।। ५१६ ॥ इह ते मदकलकादम्बकण्ठकन्दलितसारसाक्रन्दाः । शोभन्ते बलाकालीढनीलनिचुला स्तटोद्देशाः ॥ ५१७ ॥ सुषिरापसृतसकर्दमजडजललवभिन्नभङ्गरससारः । परिदलितकषायग्रन्थिगन्धो मृणालानाम् ॥ ५९८ ॥ अन्योन्यनिर्गमोत्क्षिप्तविषमदल संनिवेशनिविडाः । इह ताः संचारस्खलितकुक्कुहा अरण्यनलिन्यः ॥ ५१९ ॥ मोघरसितानीह निर्वर्तन्ते नभो घूर्णितानां कुरराणाम् । उदवृत्तमीनताडितघननलिनीदलासु सरसीषु ॥ ५२० ॥ इह वायससेवितकीटयुक्तशुष्कचिपिटसालूराः । जालिकाकृष्टशम्बूक शैवलास्तीरपर्यन्ताः ॥ ५२१ ॥ उद्वेल्लयति समीरः कलभकराग्रापशोणमूलानि । संस्त्यानफेनस्फुटपिच्छिलानीह नलिनीपत्राणि ॥ ५२२ ॥ ७९ ५१६. सुरहिनवगंध" and सुरहिमहणिद्ध for सुरहिमिहगंध मुद्ध' for "बाल ं. ५१७. "संवलिय" for 'कंदलिअ ' . सरुद्देसा and तरुद्देसा for तडुद्देसा. ५१८. जलल संभन and जडजलसंभिण्ण' for जडजललवभिण्ण ५२१. 'संकुल for “सेविअ ं. जाल ( लि ) यमुक्कस' for जालियकअ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001364
Book TitleGaudavaho
Original Sutra AuthorVakpatiraj
AuthorNarhari Govind Suru, P L Vaidya, A N Upadhye, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1975
Total Pages638
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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