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जैन-गान
सन्मति युग-निर्माता
शिवपुर-पथ परिचायक जय हे ! सन्मति युग-निर्माता!
गंगा कल-कल स्वर से गाती, तब गुण गौरव-गाथा । सुन-नर-किन्नर तब पद यग में, नित नत करते माथा ।।। हम भी तब यश गाते सादर शीश झुकाते ।
हे सद्बुद्धि प्रदाता ! दुःखहारक सुखदायक जय हे सन्मति युग-निर्माता ! जय हे ! जय हे ! जय हे ! जय जय जय जय हे !
मंगलकारक दया प्रचारक, खग पशु नर उपकारी भविजनतारक कर्मविदारक, सब जग तब आभारी
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