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________________ प्रकाशकीय बोल अमर भारती, पूज्य गुरुदेव उपाध्याय अमर मुनिजी महाराज के प्रवचनों की पुस्तक है । तीन खण्डों में विभक्त है । सब मिलाकर इसमें तेतालीस प्रवचन उपनिबद्ध हैं । प्रवचन लघुकाय हैं, लेकिन हृदय-स्पर्शी हैं। अमर भारती का यह द्वितीय संस्करण है। इसका प्रथम संस्करण जयपुर में छपा था। इसकी लोकप्रियता का यह प्रबल प्रमाण है, कि जनता में इसको निरन्तर माँग रही है। आज भी दूर-दूर के क्षेत्रों से इसके पुनः प्रकाशन की मांग की जा रही है। अतः यह द्वितीय संस्करण प्रकाशित किया जा रहा है। आगरा क्षेत्र के सद्भाग्य से पण्डित प्रवर श्री विजय मुनिजी शास्त्री का वर्षावास आगरा में है । अतः उनकी देख-रेख में ही पुस्तक का पुनः प्रकाशन किया जा रहा हैं। दोनों संस्करणों का संकलन, सम्पादन और प्रकाशन मुनिश्री जी के सानिध्य में सम्पन्न हुआ है । पूज्य गुरुदेव की अन्य अनेक पुस्तकों का सम्पादन भी आप ने बड़ी योग्यता के साथ किया है। श्री विजय मुनिजी शास्त्री लेखन-कला में और प्रवचन-कला में निपुण, निष्णात और प्रख्यात रहे हैं। अपने महान् गुरु के अनुरूप उनके प्रमुख शिष्य विजय मुनिजी भी महान् योग्य शिष्य हैं । ___प्रस्तुत पुस्तक में, मुख्य रूप से जयपुर वर्षावास के प्रवचन हैं, लेकिन राजस्थान के अन्य नगरों के प्रवचन भी इसमें हैं । दिल्ली और ताज नगर आगरा के प्रवचन भी यथाप्रसंग उपनिबद्ध हैं । सन् १९४८ से १९५५ तक के प्रवचनों का संकलन एवं सम्पादन, इसमें है । अमर भारती के प्रवचनों की भाषा सुन्दर है, भाव मधुर हैं और शैली आकर्षक है। द्वितीय संस्करण में कुछ परिवर्तन भी किया है । इतिहास की दृष्टि से प्रवक्ता के मूल भावों की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001352
Book TitleAmarbharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, L000, & L005
File Size10 MB
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