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ध्येय-हीन जीवन, व्यर्थ है ४१ वर्ण हो, अंग-विन्यास व्यवस्थित हो, देह में बल-शक्ति भी हो, परन्तु यदि इस सुन्दर मनुष्य जीवन का कोई ध्येय न हो, तो सुन्दर रेशमी-वस्त्र और माणक-मोतियों के अलंकार भी मनुष्य शरीर के वास्तविक अलंकार नहीं हैं । इनकी कोई कीमत नहीं होती । ये तो पते बिना के कार्ड के समान हैं। यदि जीवन में ये सब कुछ होकर भी मनुष्यता, दया, प्रेम और सद्भाव नहीं तो वह जीवन पते बिना के कार्ड के समान व्यर्थ है, निरर्थक है। सुन्दर कार्ड पर जैसे पता आवश्यक है, वैसे ही जीवन में ध्येय भी आवश्यक है। लाल भवन, जयपुर
३१-७-५५
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