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________________ सम्पादकीय पुरोवाक् अमर-भारती में, अमर-गुरु के अमृत-कल्प प्रवचनों का संकलन, संचयन एवं सम्पादन किया गया है । लघुकाय प्रवचन हैं, लेकिन गम्भीर, मधुर, रुचिर, सुन्दर हैं। भाव गहन हैं, भाषा प्राञ्जल है, शैली शैल-सरिता तुल्य है । दस-पन्द्रह मिनट में एक प्रवचन, आसानी से पढ़ा जा सकता है आज के व्यस्त जीवन में मनुष्य के पास अधिक समय भी कहाँ ? अर्थ-प्रधान इस युग में अधिकतर समय, अर्थ अजित करने में व्यतीत होता है, कुछ समय राजनीति में व्यय हो जाता है, विज्ञान का चमत्कार भी चित्त को विचलित कर देता है। संस्कृति से सुदर, साहित्य से पराङ मुख और कलाविकल जीवन के भार को मनुष्य किसी प्रकार ढोता चला जा रहा है। किधर जाना है ? कब जाना है ? क्यों जाना है ? समाधान इन प्रश्नों का मनुष्य के पास है, नहीं। जीवन में गति नजर आती है, यति कहीं दूर-दूर भी परिलक्षित नहीं होती। नदी का वेगवान् प्रवाह है, किनारा नहीं है। लघुकाय प्रवचनों में किनारा नजर आता हैं, लक्ष्य दीख रहा है, गति में विराम भी स्पष्ट हो रहा है। किधर जाना है, कब जाना है, क्यों जाना है ? इसका भी पता लग जाता है । यही उपलब्धि हैं, अमृत कल्प प्रवचनों की । लक्ष्य का पता लगा, कि मनुष्य का जीवन फलवान् बन जाता है। परम पूज्य गुरुदेव की वाणी में जो तेजस्, ओजस्, वर्चस् है, वह अन्यत्र कहीं पर भी उपलब्ध नहीं होता। वर्तमान युग के प्रज्ञा-महर्षि की दिव्य दृष्टि ने जिस सत्य का साक्षात्कार किया है, उसे अजर, अमर एवं अभय बना दिया है, जो भी पान करेगा, वह स्वयं भी अजर, अमर तथा अभय बन जाएगा। अमर-गुरु की वाणी का यह प्रभाव एवं प्रताप है, कि उनके अमृतमय वचनों का पान करने वाला व्यक्ति, अपनी जरा को जीत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001352
Book TitleAmarbharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, L000, & L005
File Size10 MB
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