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मानव की विराट चेतना २७ मनुष्य के लिए ही नहीं, बल्कि पशु-पक्षी और पेड़-पौधों से भी स्नेह का प्रेम का तथा सद्भाव का सम्बन्ध स्थापित करती है । मनुष्य की विराट चेतना का यही रहस्य है कि वह केवल मनुष्य समाज तक ही सीमित न रह कर जग के अणु -अणु में व्याप्त हो गई है और इसी में है मनुष्य का
सच्चा मनुष्यत्व | लाल भवन, जयपुर
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१८-१-५५
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