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________________ कर्तव्य-बोध पहले अपने को और फिर दूसरों को देखो दूसरों के दोषों को देखना, जितना सरल है, अपने आत्म-स्थित को देख सकना, उतना ही कठिन है । मनुष्य अपने ही गज से जब अपने आपको नापता है, अपनी ही विचार-तुला से जब अपने आपको तोलने बैठता है और अपने ही दृष्टिकोण से जब अपने आपको परखता है, तब निःसन्देह वह अपने को ज्ञानी, विवेकी और अनुभवी समझने लगता है। उसने अपने संबंध में जो कल्पना करली है, एक मानसिक चित्र तैयार कर लिया है, उसके विपरीत जब कोई मनुष्य विचार करता है, बोलता है अथवा प्रवृत्ति करता है, तब वह उसे अपना विरोधी, वैरी और घातक घोषित कर देता है। उसके सम्बन्ध में जन-जन के मानस में द्वष, घृणा और नफरत फैलाता फिरता है। उसे निन्दक और आलोचक कहता है। - वस्तुतः वह स्वयं ही अपना बैरी है, विरोधी है और है अपना परम शत्रु । अपनी योग्यता से अधिक अपने को समझना, अपने दोषों को भूलकर, अपने अवगुणों को भी गुण समझने की भूल करना-यही है, पतन का पथ । एक विचारक ने अपनी पुस्तक में लिखा है-"प्रत्येक कार्य में छोटीछोटी भूलों का भी पता पा लेना सफल जीवन का और साधक जीवन का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001352
Book TitleAmarbharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, L000, & L005
File Size10 MB
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