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________________ भारत का राष्ट्रवाद आज मैं अपने श्रोताओं से उस सम्बन्ध में कुछ कहै, जो विचार मेरे सम्मुख प्रस्तुत किया गया है, और वह है-आधुनिक राष्ट्रीयता । किसी युग में व्यक्ति बड़ा था। वह अपने आपको बहुत ऊंचा समझता था। जीवन में केवल अपने लिए ही तैयारी करता था, इसके बाद कुछ आगे बढ़ा और परिवार के रूप में एक इकाई को लेकर बैठ गया । वह अपना ममत्व, अपना स्नेह और अपना सुख भूलकर परिवार के रूप में सोचने-समझने लगा। फिर और उत्क्रांति हुई। उसने आस-पास के हजारों परिवारों से सम्बन्ध जोड़ा। यह समाज का रूप बन गया। उसने विचार किया परिवार तथा समाज के सुख-दुःख अलग नहीं है। इस प्रकार व्यक्ति ने धीरे-धीरे समाज के साथ रोना और हंसना सीखा। वह समाज के आँसुओं के साथ आँसू बहाने लगा और मुस्कराहट के साथ वह भी मुस्कराने लगा इस तरह विकास करते-करते समाज बन गया। __ मानव जाति का विकास वहीं पर समाप्त नहीं हो गया। हजारों समाजों को मिलाकर एक राष्ट्र बनाने का विराट रूप मनुष्य के सामने खड़ा था। उसने समाज की किले बन्दी से निकल कर एक राष्ट्र के सम्बन्ध में सोचना प्रारम्भ किया और हजारों परिवार, हजारों समाज मिलकर ( १६० ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.001352
Book TitleAmarbharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, L000, & L005
File Size10 MB
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