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________________ १५६ अमर-भारती किया होगा ? दूसरी और वह जो जन्मना उच्च कहला कर भी पामर, असंयत तथा पाशविक जीवन यापन करता है, तो बतलाइये, क्या ऐसे हित और अस्वर्ग्य जीवन व्यतीत करने वाले व्यक्ति को ऊँचा कैसे माना जाए ? मैं आप से भगवान महावीर की बात कह रहा था. अतः उनकी वाणी को उनके शब्दों में ही आप तक पहुँचा देना चाहता हूँ "कम्मुणा बंभणो होइ, कम्मुणा होइ खत्तिओ । वसो कम्मुणा होइ, सुद्दो हवइ कम्मुणा ॥ " जन्म से कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र नहीं होता । ये सारी 'विशेषताएँ तो आचरण से, सयम से प्राप्त होती हैं । जब भगवान महावीर जात-पांत के विरुद्ध क्रांति का प्रयोग कर रहे थे, तो उन जैसा ही एक और महापुरुष जनता के हृदय में क्रांति की उथलपुथल मचा रहा था । वह महापुरुष भी जिसे हम भगवान् बुद्ध कहते हैंविश्व को यह पुनीत सन्देश दे रहा था कि जन्मना जाति का निर्णय कभी भी मान्य नहीं हो सकता । जाति-पांति का अस्तित्व प्रथम तो है ही नहीं और यदि मान भी लिया जाए, तो उसकी आधारशिला आचरण है, जन्म नहीं । भगवान बुद्ध के प्रधान शिष्य आनन्द एक बार पाद-विहार करते जा रहे थे कि गर्मी के कारण उनको जोर की प्यास ने व्याकुल कर दिया । मार्ग स्थित कुएँ पर जल भरती हुई बहन से उन्होंने पानी माँगा, तो वह बहन किंकर्तव्यविमूढ़-सी खड़ी रह गई, क्योंकि उसने तथाकथित शूद्र जाति में जन्म लिया था । अपनी सारी शक्ति बटोर कर उस लड़की ने कहामहाराज ! मैं तो एक शूद्र कन्या हैं, आपको जल कैसे पिला सकती हूँ ? उस बेचारी को जन्मगत ऐसे ही संस्कार मिले थे, उसे समाज की ओर से घृणित, दलित और उपेक्षणीय व्यवहार का उपहार मिला था, वह अपने को सर्वथा दीन-हीन तुच्छ समझ बैठी थी । अतएव उसने भिक्षु को ऐसे दीनता भरे शब्दों में उत्तर दिया । आनन्द ने हंसकर कहा - " बहिन ! मैंने तो तुम से पानी माँगा है, जाति नहीं । यदि मैं इस तत्वहीन और थोथे सिद्धांत में कुछ सार समझता होता, तो तुम से पहले ही पूछता कि तुम्हारी क्या जाति है ? और बाद में पानी पिलाने की बात कहता । आनन्द की इस मर्मस्पर्शी वाणी से शूद्र कन्या के हृदय का कण-कण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001352
Book TitleAmarbharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, L000, & L005
File Size10 MB
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