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૪૬ अमर-भारती
की अधिकतर पीड़ाएँ मानसिक ही होती हैं, पर मनुष्यों की ओर से लादी गई हैं । भगवान तुम किसी को दुःख नहीं दोगे, तब विश्व की दूसरों को दुःख से छुटकारा दिलाओगे, तो पाओगे । सुख और शान्ति का मधुर अनुभव प्राप्त कर सकोगे ।"
और मानसिक पीड़ाएँ मनुष्यों महावीर ने कहा है - ' जब दुःख - राशि को समेट लोगे । तुम भी दुःखों से छुटकारा
भगवान महावीर ने किसी भी जीवन = प्रवाह को बहने से नहीं रोका । उनका कहना है कि जीवन की गति को न रोको, बल्कि अपनी जीवन सरिता के प्रवाह को मर्यादित रूप से बहाओ । नदी के प्रवाह में बाढ़ आ जाती है, तब सैकड़ों गाँवों को नष्ट-भ्रष्ट कर डालती है । किन्तु नदी का प्रवाह जब मर्यादा में बहता है, तब किसी को किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होता । कोई गृहस्थ हो या साधु, राजा हो या रंक, सेनापति हों या सैनिक, जो अपनी मर्यादा में रहता है, वह कभी भी दुःखित नहीं होता । रावण ज्योंही मर्यादा से बाहर हुआ नष्ट हो गया । सीता अपनी मर्यादा पर अडिग थी, उसका कुछ भी नहीं बिगड़ा । हिंसा-अहिंसा की जो मर्यादाएं रही हैं, उनका परिपालन करने से मनुष्य कभी दुःख नहीं भोगता ।
अनन्त पुण्य का उदय होने पर मनुष्य जन्म मिलता है । मनुष्य जीवन के लिए देवता भी बड़ी इच्छा रखते हैं । भगवान महावीर ने कहाजिस तत्व को तुम समझ गए हो, उसे प्राप्त करने में विलम्ब मत करो, देर मत लगाओ । भोग-विलास में पड़कर जीवन को नष्ट न करो । यदि मनुष्य बन गए हो, तो मनुष्य के कर्तव्य सदा करते रहो । आत्मधर्म को पहिचानो, और उसका पालन करो ।
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