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अमर-भारती
सकता है, दूसरा कोई नहीं । परन्तु इस विषय में विश्व की विभिन्न धार्मिक परम्पराओं में मतैक्य नहीं है । मैंने जो कुछ कहा है, यह जैन-संस्कृति की मान्यता है । जैन संस्कृति का कहना है कि शास्त्र मनुष्य लोक में बने हैं । अतः उनका प्रणेता मनुष्य ही हो सकता है। जैनेतर धर्मो की विभिन्न धारणाएँ काम कर रही हैं । वह इस प्रकार हैं
“शास्त्रों के बनाने वाले देवता हैं, क्योंकि उनके अन्दर अद्भुत शक्ति रही हुई है ।"
"देव नहीं, ईश्वर ही शास्त्रों का जन्मदाता है ।"
" सृष्टि को विश्वकर्मा ने बनाया है । अतः शास्त्रों का रचियता भी विश्वकर्मा ही है ।"
" कुरान ही सबसे बड़ा शास्त्र है । और उसका बनाने वाला खुदा है ।"
" बाईबिल ही महान शास्त्र है । (God) है 1"
और उसका प्रणेता 'गोड'
सभी का अपना-अपना विश्वास होता है । किन्तु आज के बौद्धिक युग में मात्र विश्वास से ही काम नहीं चल सकता । उसके साथ तर्क भी अत्यावश्यक है । जैन संस्कृति की मूल भावना यह है - " मनुष्य से बढ़कर विश्व में अन्य कोई शक्ति नहीं है । अतः शास्त्र - स्रष्टा मनुष्य ( विशिष्ट मनुष्य ) ही हो सकता है, अन्य कोई नहीं ।"
मुझे एक सज्जन मिले। बात-चीत से ज्ञात हुआ है कि वह अपने मस्तिष्क पर अविश्वासों का बेहद बोझा उठाये हुए है । उन्होंने कहा"महाराज, आचार्य हेमचन्द्र ने व्याकरण, साहित्य, दर्शन और ज्योतिष तथा योग शास्त्र आदि विषयों पर विशाल ग्रन्थ राशि लिख डाली है । . मालूम होता है, उन्हें सरस्वती देवी सिद्ध होगी । अन्यथा, इतना विशाल साहित्य कैसे लिख सकते थे ।" मैंने कहा - " आप आचार्य हेमचन्द्र का और विशेषतः उन की प्रतिभा का अपमान कर रहे हैं, सन्मान नहीं । क्या मनुष्य कुछ नहीं कर सकता ? जो कुछ भी महान् है, वह सब क्या देवताओं की विभूति ही है ?
शास्त्र मनुष्यों के द्वारा बने हैं, जो सर्वज्ञ थे या सर्वज्ञकल्प थे । नारकी शास्त्र नहीं पढ़ सकते और पशु भी
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सर्वज्ञ नहीं तो शास्त्र निर्माण
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