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पिछले वर्षों में कई बार माँग आ चुकी है, पर अभी तक कुछ कारणों से यह कार्य रुका हुआ है। ___वह नवीन संस्करण पिछले संस्करणों से कुछ भिन्न प्रतीत हो सकता है। कुछ पुराना घटा दिया गया है, कुछ नवीन जोड़ दिया गया है।
उपाध्याय श्री अमरमुनि ने इसका पुनः सूक्ष्म अवलोकन करके महत्वपूर्ण संशोधन और परिवर्धन के द्वारा पुस्तक की युगीन उपयोगिता को जीवित बना दिया है।
अन्त में हम अपने श्रद्धेय बहुश्रुत विद्वान् उपाध्याय कवि श्री अमरमुनिजी के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं। जिन्होंने जैन धर्म के सहस्रों जिज्ञासु पाठकों के लिए इस प्रकार की मौलिक और सुन्दर पुस्तक का प्रणयन किया है।
इस पुस्तक का पुनः प्रकाशन पंडित प्रवर श्री विजयमुनिजी शास्त्री की प्रेरणा और आशीर्वाद से किया जा रहा है।
आशा है, यह नवीन संस्करण पिछले संस्करणों से अधिक उपयोगी और जनप्रिय होगा। इसी आशा के साथ....... ।
ओम प्रकाश जैन मन्त्री सन्मति ज्ञानपीठ
आगरा
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