________________
जैन इतिहास की प्रसिद्ध कथाएँ
दीन लकड़हारा था। वही आज बहुत बड़ा त्यागी बन गया ! धन्य हो, इतना गजब का त्याग उसने किया है कि मगध के महामंत्री भी अश्व से नीचे उतर कर प्रणाम करते हैं। यह कितनी प्रसन्नता की बात है ?"
सामन्त के शब्दों में तीखा व्यंग था, त्याग का उपहास था । अभयकुमार को उक्त संस्कारहीन परिहास पर रोष तो आया, परन्तु उसके प्रबुद्ध विवेक ने मधुर मुस्कान की मुद्रा में उस रोष को भीतर - ही - भीतर पी लिया । अज्ञान और अहंकार का प्रतिकार ज्ञान और नम्रता से ही हो सकता है। अभयकुमार इस बात को जानता था कि सामन्त ने मगध के महामंत्री का उपहास नहीं किया, किन्तु ज्ञातपुत्र महावीर की क्रांतिकारी त्याग - परम्परा का उपहास किया है । भोग का कीड़ा त्याग की ऊँचाई की कल्पना करे भी, तो कैसे करे ? एक गंभीर और अर्थपूर्ण मुस्कराहट के साथ अभयकुमार आगे बढ़ गए। सब लोग वन-विहार का आनन्द लेकर अपने - अपने महलों में लौट आए !
दूसरे दिन महामंत्री ने राजसभा में एक - एक कोटि स्वर्ण - मुद्राओं के तीन ढेर लगवाए और खड़े होकर सामन्तों से कहा-"जो व्यक्ति जीवन - भर के लिए कच्चे जल का उपयोग, अग्नि का उपयोग और स्त्री-सहवास का त्याग करे, उसे मैं ये तीन कोटि स्वर्ण मुद्राएँ उपहार में दगा।"
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org