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जैन इतिहास की प्रसिद्ध कथाएँ
नहीं सका। मैं उसी दिन भौतिक ऐश्वर्य के प्रकार ये जगा. मगर करता समृद्ध घरं छोड़ कर निकल पड़ा। मैंने मुनिव्रत ले लिया। साधना में लीन हो गया। अब मुझे आर्व शानि मिल चुकी है। मेरी दीनंता मिटे चुकी है । मैं अब अपना नाथ आप बन गया हूं। अपना सहारा खुद हूं।" दु: --सम्राट् श्रेणिक ने जीवन की इस अनाथता को जीवन में पहली बार समझा ! भौतिक वैभव का दर्प गल गया, मगध का नाथ अब अपने आपको अनाथ देखने लगा। जिस भौतिक बल पर विश्वास किए वह अपने को संसार का नाथ मान रहा था, उस भौतिक बल और साधनों की निस्सारता एवं अग्रतायता का अनुभव सम्राट के मन को उद्धे लित कर उठा। मनि की वाणी में आत्मानुभूति की तीव्र धड़कन थी, जो उनको आत्मनाथता को व्यक्ति कर रही थी। सम्राट को आज सच्ची नाथता के दर्शन. हुए, वे श्रद्धा से मुनि के चरणों में झुक गए। ----. .. .
--उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन २०
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