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जैन इतिहास की प्रसिद्ध कथाएँ
भगवान् महावीर का अनुयायी श्रावक था। पर्युपण पर्व के अवसर पर आठ दिन धर्माराधना करना उसका जीवन · व्रत था । मार्ग में ही, एक सुरक्षित स्थान देखकर पड़ाव डाल दिया गया । उदायन पौषध व्रत, स्वाध्याय एवं आत्म चिन्तन करने लगा।
पर्युषण का अन्तिम दिन 'संवत्सरी-पर्व था । उदायन ने रसोइये को बुला कर कहा-"आज संवत्सरी-पर्व है । मैं तो उपवास करूंगा। और दूसरे सेनापति सामन्त आदि जो स्वेच्छा से उपवास करना चाहें,उपवास करें और जो उपवास ना कर सकें, उनके लिए भोजन को व्यस्था कर देना।" सम्राट् ने चण्डप्रद्योत के लिए खासतौर से भोजन व्यवस्था की सूचना दी । सम्राट का विश्वास मात्र न्याय के लिए संघर्ष में था, किन्तु वे व्यक्तिगत घृणा से परे थे । रसोइये ने चण्डप्रद्योत से पूछा कि-"आप आज क्या भोजन पसंद करेंगे ? संवत्सरो पर्व होने से हमारे सम्राट और कुछ अन्य लोग तो आज उपवास करेंगे।" ___ "आज ही क्यों पूछा जा रहा है ? अवश्य ही भोजन में विष देने की यह गुप्त योजना प्रतीत होती है"-चण्डप्रद्योत सशंक हो उठा। 'जैसा मन वैसा चिन्तन !'आखिर, वह दूसरी
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१. जहाँ सेना ने पड़ाव डाला था, वह स्थान दशपुर' के नाम से प्रसिद्ध हुआ, जो वर्तमान में 'मन्दसौर' कहा जाता है।
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