SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सामायिक का मूल्य के लिए अपने मन में अहंकार और विकार को साफ करना पड़ता है । सामायिक को वही प्राप्त कर सकता है, जिसका मन निर्मल हो, समत्व में स्थित हो, भौतिक आकांक्षाओं से रहित हो । सामायिक बाहर में किसी से लेने की चीज नहीं है, वह तो स्वयं अपने अन्दर में से हो पा लेने जैसी शुद्ध स्थिति है । पूणिया श्रावक की सामायिक से मेरा अभिप्राय उससे सामायिक खरीदने या माँगने से नहीं था। मेरा अभिफ्राय था कि पूणिया - जैसी - शुद्ध निष्काम सामायिक होनी चाहिए। न उसमें इस लोक को कोई कामना हो और न परलोक की !" महाराज श्रेणिक सुनते ही चकित रह गए। भौतिक धन के द्वारा सामायिक खरीदने का 'अहं; चूर-चूर हो गया और अब उन्हें यह समझने में देर नहीं लगी कि "बन्धन-मुक्ति के लिए समत्व में स्थिर होने पर ही सामायिक की उपलब्धि हो सकती है।" --श्रेणिक चरित्र ढाल ५६ (त्रिलोक ऋषिजी) M Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001345
Book TitleJain Itihas ki Prasiddh Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy