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________________ समाज और संस्कृति समाजवाद के आधार पर सम्पूर्ण समाज को एक साथ बदला जा सकता है । यह कभी न सम्भव हुआ है और न हो सकेगा । मेरे विचार में सुधार का प्रारम्भ समाज से न होकर व्यक्ति से होना चाहिए । व्यक्ति समाज की ही एक इकाई है । जब व्यक्ति सुधर जाता है, तो समाज भी स्वतः सुधर जाएगा । बहुत से लोग समय-समय पर मुझसे पूछा करते हैं, कि समाजवाद आया तो क्या होगा ? उनके मन में आशंका है, कि यदि समाजवाद आ गया, तो धन और सम्पत्ति न रहेगी । मेरे विचार में समाजवाद अथवा साम्यवाद से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है । समाजवाद आए तो आए । यदि सामूहिक जन-जीवन की उत्थान भावना के साथ समाजवाद आयेगा, तो अन्तर केवल इतना ही पड़ेगा, कि व्यक्ति के पास पैसा नहीं रहेगा तो सरकार के पास रहेगा । सम्पत्ति तो रहेगी ही, सम्पत्ति नष्ट नहीं हो सकती । देश की सम्पत्ति को नष्ट करना समाजवाद का उद्देश्य भी नहीं है । यदि देश में सम्पत्ति न रहेगी, तो देश कंगाल हो जाएगा और कंगाल राष्ट्र अपना विकास नहीं कर सकता । अतः देश की सम्पत्ति को नष्ट करना समाजवाद का लक्ष्य नहीं है । उसका लक्ष्य है, सम्पत्ति का उचित रूप में वितरण करना । कुछ लोगों के मन में यह भी भय है, कि समाजवाद के आने पर समाज मुख्य हो जाएगा और व्यक्ति गौण पड़ जाएगा । मेरे विचार में इस विचार से भी भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है । हमारा पारिवारिक जीवन भी एक प्रकार का समाजवाद ही है । जिस प्रकार परिवार में रहते हुए हम परिवार की मुख्यता का आदर करते हैं । परिवार का प्रत्येक सदस्य अपने व्यक्तित्व को सुरक्षित रखते हुए भी जिस प्रकार अपने परिवार के लिए बड़े-से-बड़ा त्याग कर डालता है इसी प्रकार समाज में रहते हुए यदि समाज की मुख्यता रहे, तो इससे व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में किसी प्रकार की बाधा उपस्थित नहीं हो सकती । जिस प्रकार परिवार का लक्ष्य यह होता है, कि उसके प्रत्येक सदस्य को उचित आदर सत्कार एवं सुख सुविधा मिले, उसी प्रकार समाजवाद का भी यही लक्ष्य है, कि उसका प्रत्येक सदस्य अपने व्यक्तित्व का विकास करे एवं सम्मान के साथ जीवनोपयोगी साधन उपलब्ध करे । जैन दर्शन समन्वयवादी है । वह कहता है, कि समाज के विकास में व्यक्ति का विकास है और व्यक्ति के विकास में समाज का विकास है । एक का विकास और प्रगति दूसरे के विकास और प्रगति पर निर्भर है । मेरे विचार में समाजवाद का अर्थ है—व्यक्ति के हृदय में सामूहिक ८८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001344
Book TitleSamaj aur Sanskruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size15 MB
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