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________________ जीवन का रहस्य बहिरङ्ग । बहिरङ्ग जीवन अन्तरंग जीवन से प्रभावित होता है । बहिरंग जीवन का प्रभाव भी अन्तरंग जीवन पर पड़ता है । विचार ही आचार बनता है और फिर आचार ही विचार बन जाता है । विचार और आचार का समन्वय करना, यही जीवन का सबसे बड़ा रहस्य है । बात यह है, कि जब हम जीवन के सम्बन्ध में विचार करते हैं, तब हमें ऐसा प्रतीत होता है, कि हमने जीवन को समझ लिया है, किन्तु जीवन को समझना आसान काम नहीं है । भारतीय साहित्य में और भारतीय संस्कृति में जीवन के सम्बन्ध में जो कुछ कहा गया है, उससे ऐसा प्रतीत होता है, कि जीवन को जितनी गहराई से देखा जाता है, जीवन उतना ही अधिक गहरा हो जाता है । योग दर्शन में बताया गया है, कि जीवन वही है, जैसा हम उसके सम्बन्ध में सोचते हैं और विचार करते हैं । व्यक्ति जैसा सोचता है, उसके सामने वैसा ही संसार आकर खड़ा हो जाता है । योग-दर्शन के अनुसार जीवन और जगत मन की वृत्तियों का खेल है भारत के अन्य विचारकों ने भी जीवन के सम्बन्ध में बहुत कुछ कहा है और बहुत कुछ लिखा है । उस सबको यहाँ पर कहने का न प्रसंग है और न आवश्यकता ही है । हमें यहाँ पर यह विचार करना है, कि जो कुछ और जैसा कुछ जीवन हमें मिला है, उसका उपयोग एवं प्रयोग किस प्रकार किया जाए, जिससे कि हम अपने जीवन के लक्ष्य को अल्प श्रम से शीघ्र प्राप्त करने में सफल हो सकें । । जैन- दर्शन के अनुसार जीवन की सफलता आचार, संयम और चारित्र के पालन में ही है । जैन दर्शन में और विशेषतः जैन आगम ग्रन्थों में सर्वत्र यही कहा गया है, कि संयम और चारित्र ही जीवन की मूल शक्ति है । चारित्र की अर्थात् संयम की जब व्याख्या एवं परिभाषा होने लगी, तब उन्होंने कहा, कि उसके दो रूप हैं— एक रूप वह है, जो हमें बाहर में दिखाई देता है । एक व्यक्ति सामायिक करता है, दूसरा व्यक्ति तपस्या करता है, तीसरा व्यक्ति दान करता है । इस प्रकार अनेक प्रकार के क्रिया - काण्ड जो बाहर में हमें दिखलाई देते हैं, वे कहाँ से दिखाई देते हैं ? इन्द्रियों से दिखाई देते हैं, यदि यह कहा जाए, तो प्रश्न यह है, कि आँखें कहाँ तक पहुँच पाती हैं, आँखों की देखने की ताकत कितनी दूर तक है ? इस सम्बन्ध में कहा गया है, कि इन्द्रियाँ केवल मूर्त द्रव्यों तक ही जा सकती हैं, अमूर्त द्रव्यों को नहीं पकड़ सकतीं । इन्द्रियों की सत्ता है, मूर्त तक । मूर्त का अर्थ है, जिसमें रूप है, जिसमें रस Jain Education International For Private & Personal Use Only ७३ www.jainelibrary.org
SR No.001344
Book TitleSamaj aur Sanskruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size15 MB
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