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विकल्प से विमुक्ति
संसार में जितना भी कष्ट, दुःख एवं क्लेश है, वह सब अज्ञान का है । अज्ञान के नष्ट होते ही और ज्ञान के उदय होते ही संसारी आत्मा की समग्र पीड़ा दूर हो जाती है । सब कुछ खोकर भी यदि आत्मरूप हीरे को बचा लिया है, तो वस्तुतः हमारा कुछ भी नहीं बिगड़ा है । इसके विपरीत आत्मा को भूलकर और सब कुछ को याद रख कर भी हम नफे में नहीं, टोटे में ही रहते हैं । अतः मैं कहता हूँ, कि सब कुछ खोकर भी यदि आत्मा को जान लिया है और आत्म-स्वरूप को पा लिया है, तो हमने सब कुछ जन लिया है, और हमने सब कुछ पा लिया है ।
परन्तु यह स्थिति तभी आयेगी, जब कि मानव के मन का मिथ्यात्व का विकल्प दूर हो जाएगा । मैं आपसे कह रहा था, कि आत्मा में हजारों-हजार प्रकार के विकल्प हैं और उन विकल्पों में सबसे भयंकर विकल्प है, मिथ्यात्व का । जब तक मिथ्यात्व का विकल्प रहेगा, तब तक न आत्मा का परिबोध होगा और न परमात्मा का ही परिबोध हो सकेगा । वस्तुतः मिथ्यात्व रूप विकल्प के कारण ही, यह आत्मा अपने स्वरूप को भूला हुआ है । जिस दिन और जिस क्षण अपने मन के मिथ्यात्व रूप विकल्प को आप दूर कर सकेंगे, उसी दिन और उसी क्षण आपको आपका आत्मरूप हीरा मिल जाएगा । जिसे आत्मा का साक्षात्कार हो गया, फिर परमात्मा बनते भी उसे क्या देर लगती है । याद रखिए, आप किसी भी प्रकार की साधना क्यों न करते हों, जब तक मिथ्यात्व का विकल्प दूर नहीं हो जाता है, तब तक न श्रावक-जीवन की साधना सफल हो सकती है और न साधु-जीवन की ही साधना सफल हो सकती है ।।
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