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स्वभाव और विभाव
इसीलिए मैं आपसे बार-बार यह कहता हूँ कि अपने आपको देखो । अपनी अन्तरात्मा को परखो । अपने को सदाकाल हीन और दीन समझना महापाप है । इसी प्रकार अन्य आत्माओं को भी मूलतः हीन और दीन समझना महापाप है । अस्तु, अपने से भिन्न आत्माओं में दोष मत देखो, उनके गुणों को ही ग्रहण करने का प्रयत्न करो । संसार के प्रत्येक व्यक्ति में अच्छापन और बुरापन रहता है, परन्तु बुरापन वास्तविक नहीं है, अच्छापन ही वास्तविक है । प्रत्येक व्यक्ति का मन एक दर्पण है, उसके सामने जैसा भी बिम्ब आता है, वही उसमें प्रतिबिम्बित हो जाता है । उसके सामने यदि एक योगी पहुँच जाता है, तो उसका प्रतिबिम्ब भी उसमें पड़ता है और यदि एक भोगी पहुँच जाता है, तो उसका प्रतिबिम्ब भी उसमें पड़ता है । आप उसके सामने जिस किसी भी रंग का फूल रख देंगे, उसमें वैसा ही प्रतिबिम्ब हो जाएगा । आपका मन एक दर्पण है, उसके सामने आप जिस किसी भी रूप-रंग में जाकर खड़े होंगे, आपका वैसा ही रंग-रूप उसमें प्रतिबिम्बित हो जाएगा । आप वहाँ कैसा बन कर जाना चाहते हैं, यह आपके अपने हाथ में है । आप अच्छे भी बन सकते हैं और आप बुरे भी बन सकते हैं । और जब अच्छे बन सकते हैं, और मूल में अच्छे हैं ही, तब अच्छे क्यों न बनें ? बुरे क्यों बनें ।
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