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________________ व्यक्ति का समाजीकरण जीवन - पर्यन्त भी स्थायी रह सकती हैं । वास्तव में उनकी जन्मजात एवं आन्तरिक शक्ति इतनी प्रबल होती है, कि मनुष्य का सारा जीवन उनको नियंत्रित करने और उनका समाजीकरण करने में व्यतीत हो जाता है । समाज-शास्त्र के प्रसिद्ध पण्डित फिचटर के अनुसार समाज में समाजीकरण एक व्यक्ति और उसके साथी मनुष्यों के बीच, एक दूसरे को प्रभावित करने की प्रक्रिया है, यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके फलस्वरूप सामाजिक व्यवहार के विभिन्न ढंग स्वीकार किए जाते हैं और उनके साथ सामञ्जस्य किया जाता है । समाज - शास्त्र में समाजीकरण की व्याख्या दो दृष्टिकोणों से की जाती है—Objectively वैषयिक दृष्टि से, जिसमें समाज व्यक्ति पर प्रभाव डालता है, और Subjectively प्रातीतिक दृष्टि से, जिसमें व्यक्ति समाज के प्रति प्रतिक्रिया करता है । वैषयिक दृष्टि से, समाजीकरण एक वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा समाज अपनी संस्कृति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित करता है और संघटित सामाजिक जीवन के स्वीकृत और अनुमोदन प्राप्तं ढंगों के साथ, व्यक्ति का सामञ्जस्य करता है । इस प्रकार समाजीकरण का कार्य व्यक्ति के उन गुणों, कुशलताओं और अनुशासन को विकसित करना है, जिनकी व्यक्ति को आवश्यकता होती है, उन आकांक्षाओं और मूलों तथा रहने के ढंगों को व्यक्ति में समाविष्ट और उत्तेजित करना है, जो किसी विशेष समाज की विशेषता है और विशेष कर उन सामाजिक कार्यों को सिखाना है, जो समाज में रहने वाले व्यक्तियों को करना है । समाजीकरण की प्रक्रिया निरन्तर रूप से व्यक्ति पर बाहर से प्रभाव डालती रहती है । यह केवल बच्चों और देशान्तर में रहने वालों को, जो पहली बार समाज में आते हैं, केवल उन्हें ही प्रभावित नहीं करती, बल्कि समाज के प्रत्येक सदस्य को उसके जीवन पर्यन्त प्रभावित करती हैं । समाजीकरण की प्रक्रिया उनको व्यवहार के वे ढंग प्रदान करती है, जो समाज और संस्कृति को बनाए रखने के लिए आवश्यक है । प्रातीतिक दृष्टि से समाजीकरण एक वह प्रक्रिया है, जो समाज के अन्दर न रह कर व्यक्ति के अन्दर चलती रहती है । यह समाजीकरण की प्रक्रिया उस समय होती है, जबकि वह अपने चारों ओर के व्यक्तियों के साथ सामञ्जस्य स्थापित करने का प्रयत्न करता है । समाज में रहने वाला व्यक्ति अल्प व अधिक रूप में उस समाज के शील, स्वभाव और आदतों को ग्रहण कर लेता है, जिसमें वह रहता है । प्रत्येक व्यक्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only २२६ www.jainelibrary.org
SR No.001344
Book TitleSamaj aur Sanskruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size15 MB
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