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भारतीय संस्कृति में अहिंसा
ओर एक गन्दा वातावरण फैल जाता है । निरन्तर वर्षा होते रहने के कारण बाहर में कीचड़ और अन्दर में गन्दगी फैल जाती है, तथा लगातार आकाश मेघाच्छन्न होने के कारण असंख्य तारकों की नयनाभिराम झिलमिल ज्योति भी दृष्टिगोचर नहीं होती । इस कीचड़, गन्दगी और अन्धकार से मानव-मन ऊब-ऊब जाता है । वर्षा-काल की समाप्ति पर जब आकाश स्वच्छ हो जाता है और बाहर का कीचड़ सूख जाता है, तब घर के अन्दर की गन्दगी को भी बाहर निकालने का प्रयत्न किया जाता है । शारदी पूर्णिमा के उजियाले में जब हम अनन्त नील गगन में असंख्य तारों को जगमग करते देखते हैं और चन्द्र-ज्योत्सना से समग्र विश्व को दुग्ध-स्नात जैसे उज्ज्वल रूप में देखते हैं, तब मानव-मन उल्लास और आनन्द से भर जाता है । शरद पूर्णिमा से ही लोग अपने घरों की सफाई और पुताई शुरू कर देते हैं और तब यह समझा जाता है, कि अब दीपावली-पर्व निकट है और उसकी आराधना के लिए तैयारियाँ होने लगती हैं । उस समय मनुष्य अपने घर और बाहर सबको स्वच्छ और पावन बनाने का प्रयत्न करने लगता है । मनुष्य का उदास मन प्रसन्न हो उठता है, जब कि वह अपने घर के आंगन में दीपकों की माला को जगमग-जगमग करते देखता है । दीपकों की उस ज्योर्तिमय माला से उसके घर का अन्धकार ही दूर नहीं होता, बल्कि प्रांगण का अन्धकार भी दूर भाग जाता है । इस पर्व के दिन अन्दर और बाहर प्रकाश छा जाता है । इसी आधार पर इसको प्रकाश-पर्व कहा जाता है । अन्धकार मानव-मन को उल्लसित नहीं करता, वह उसे उदास बनाता है, पर प्रकाश का स्पर्श पाकर वह अन्धकार दूर भाग जाता है और मानव-जीवन का कण-कण आलोक से आलोकित हो उठता है । दीपावली-पर्व क्या था ? इसके पीछे हमारा सही दृष्टिकोण क्या था ? उसे आज हम भूल गए हैं । अन्दर और बाहर की स्वच्छता ही इस पर्व का मुख्य उद्देश्य था । गन्दगी हिंसा का प्रतीक है और स्वच्छता अहिंसा का प्रतीक । हम गन्दगी को दूर करके हिंसा को दूर करते हैं और स्वच्छता को लाकर हम अहिंसा की आराधना करते हैं । दीपावली पर्व की आराधना भी एक प्रकार से अहिंसा की आराधना है । प्रकाश की आराधना को भारतीय संस्कृति में बड़ा ही महत्त्वपूर्ण समझा गया है । ___भारतीय साहित्य और संस्कृति में प्रकाश की उपासना के बाद कमल को भी बड़ा गौरवपूर्ण स्थान मिला है । जीवन के प्रत्येक पहलू में कमल
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