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________________ समाज और संस्कृति कहाँ से मिलेगा ? जीवन के कण-कण में अमृत है और जीवन के कण-कण में विष भी है । जिस प्रकार एक ही सागर में से अमृत निकला, और विष भी निकला, उसी प्रकार मानव जीवन के मंथन से, मोक्ष का अमृत भी मिल सकता है और संसार का विष भी मिल सकता है । आप अपने जीवन को अमृतमय बनाते हैं अथवा विषमय बनाते हैं—यह आपके अपने हाथ की बात है । आप स्वर्ग में जाना चाहें अथवा मोक्ष में जाना चाहें, तो आपको कोई रोक नहीं सकता । इसके विपरीत यदि आप नरक में जाना चाहें तो भी आपको कोई रोक नहीं सकता । आप अपनी भावना के अनुसार, भगवान भी बन सकते हैं और शैतान भी बन सकते हैं । मनुष्य का जीवन संकल्पमय होता है, वह जैसा भी संकल्प करता है, वैसा ही बन जाता हैं । मनुष्य के संकल्प में बहुत बड़ी ताकत है । मनुष्य आज जो कुछ है और जैसा कुछ है, वह अपने पूर्व संकल्प का फल है और मनुष्य जो कुछ या जैसा कुछ होगा, वह अपने वर्तमान संकल्प का ही फल होगा । आपने सुना होगा, कि शास्त्रों में कल्पवृक्ष का वर्णन आता है । कल्पवृक्ष की यह विशेषता मानी जाती है, कि उसके नीचे बैठकर मनुष्य जैसा भी संकल्प एवं विचार करता है, वह उसी प्रकार का बन जाता है । कल्पवृक्ष के नीचे बैठकर मनुष्य जिस किसी भी वस्तु की इच्छा करता है, वह वस्तु उसके समक्ष तुरन्त ही उपस्थित हो जाती है । कल्पवृक्ष के सम्बन्ध में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं । - एक बार की बात है, कि एक व्यक्ति किसी विकट वन में से यात्रा कर रहा था । जबकि वह घने जंगल में से चला जा रहा था, तो चलते-चलते वह थक गया । विश्राम लेने के लिए वह एक वृक्ष के नीचे बैठा । जिस वृक्ष के नीचे वह बैठा था, वह कल्पवृक्ष था, किन्तु उस व्यक्ति को इसका परिज्ञान नहीं था । वह बैठा-बैठा सोचने लगा कि यह घनघोर जंगल है, विकट वन है, दूर-दूर तक कहीं पर भी मनुष्य दिखलाई नहीं पड़ता है । यदि इस भयानक जंगल में सिंह आ जाए तो क्या हो, मुझे खा जाए ? इस प्रकार उसके मन में सिंह का संकल्प और विचार आया । कल्पवृक्ष का तो यह स्वभाव है, कि जैसा संकल्प होता है, वैसी ही वस्तु उपस्थित हो जाती है । उसके संकल्प के अनुसार सिंह उपस्थित हो गया और वह उससे भयभीत होकर वहीं मारा गया । जैसे उसके मन में सिंह के आने का संकल्प उत्पन्न हुआ था, वैसे ही यदि उसके मन १२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001344
Book TitleSamaj aur Sanskruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size15 MB
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