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________________ समाज और संस्कृति अपने ज्ञान को निर्मल बना, अपने ज्ञान को स्वच्छ बना और जब तेरा ज्ञान निर्मल और स्वच्छ हो जाता है, तब तेरे अन्य समस्त गुण निर्मल और स्वच्छ हो जाते हैं । ज्ञान को निर्मल बनाने का अर्थ क्या है ? संसार में अनन्त पदार्थ हैं, संसार के उन पदार्थों में चेतन पदार्थ भी हैं और जड़ पदार्थ भी हैं । उन पदार्थों को जानना ही ज्ञान का काम है । किसी भी पदार्थ में, किसी भी प्रकार का परिवर्तन करना ज्ञान का काम नहीं है । ज्ञान का काम तो केवल इतना ही है । कि जो पदार्थ जिस रूप में स्थित है, उसे उसी रूप में जान ले । कल्पना कीजिए, किसी कमरे में दीपक जला दिया गया है, तो दीपक का काम यह है, कि वह जलता रहे और अपना प्रकाश फैलाता रहे । रात भर भी यदि कोई व्यक्ति उस कमरे में न आए और काम न करे, तब भी दीपक जलता ही रहेगा । उस कमरे में कोई आए अथवा न आए, दीपक का काम है, उस कमरे को प्रकाशित करते जाना । कोई पूछे उससे, कि क्यों व्यर्थ में अपना प्रकाश फेंक रहे हो ? जब तुम्हारे प्रकाश का कोई उपयोग नहीं हो रहा है, तब क्यों अपना प्रकाश फैला रहे हो, यहाँ तो कोई भी नहीं है, जो तुम्हारे प्रकाश का उपयोग कर सके । दीपक की भाषा नहीं है । अगर उसके पास भाषा होती, तो वह कहता, कि मुझे इससे क्या मतलब ? कोई मेरा उपयोग कर रहा है, अथवा नहीं कर रहा है, इससे मुझे कोई प्रयोजन नहीं है । मेरा अपना काम है, जलते जाना और प्रकाश फैलाते जाना ही मेरा स्वभाव है । किसी भी पदार्थ को अन्दर लाना या बाहर निकालना मेरा काम नहीं है, परन्तु जो पदार्थ जिस रूप में स्थित है, उसे उसी रूप में प्रकाशित कर देना ही मेरा अपना काम है । जो सिद्धान्त दीपक का है, वही सिद्धान्त ज्ञान का भी है । ज्ञान पदार्थ को प्रकाशित करता है, किन्तु पदार्थ में किसी प्रकार का परिवर्तन करना ज्ञान का अपना कार्य नहीं है । ज्ञान एक गुण है और उसका अपना काम क्या है ? अपने ज्ञेय को जानना । संसार में जितने भी पदार्थ हैं, वे सब ज्ञान के ज्ञेय हैं और ज्ञान उनका ज्ञाता है । ज्ञान अनन्त है, क्योंकि ज्ञेय अनन्त है, परन्तु ज्ञान जब तक अवरुद्ध है, तब तक वह अनन्त को नहीं जान सकता और जब उसका आवरण हट जाता है, तब वह असीम और अनन्त बन जाता है । जिसका जितना क्षमोपशम होता है, वह उतना ही कम अथवा अधिक जान सकता है । पर सब कुछ को जानने का सामर्थ्य तो एक मात्र केवल-ज्ञानी में ही होता है । - १७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001344
Book TitleSamaj aur Sanskruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size15 MB
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