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समाज और संस्कृति
हूँ, आपसे कि सुनना क्या चीज है ? सुनने की परिभाषा क्या है ? शब्द का ज्ञान हो जाना, बस यही श्रवण है । जो शब्द का ज्ञान हुआ है, उसे हमने शब्द-सुनना कह दिया । शब्द सुना और सुनते ही वह बिखर गया, उसकी शब्द पर्याय अब नहीं रही । शब्द को सुनने के बाद शब्द तो नहीं रहता, किन्तु पीछे क्या बचा रहता है ? शब्द तो नहीं रहा, पर शब्द का ज्ञान फिर भी बच रहता है । शब्द के नष्ट हो जाने पर भी शब्द का ज्ञान शेष बचा रहता है । शब्द भले ही नष्ट हो गया, पर उस शब्द से होने वाला ज्ञान फिर भी शेष रहता है । इसलिए कि आत्मा ज्ञान स्वरूप है ।
आप कहते हैं, कि आँख से हमने रूप देखा है । देखना क्या चीज है ? रूप का ज्ञान हो जाना ही, देखना है । आँख के द्वारा रूप का ज्ञान हो गया । जब आप यह कहते हैं, कि हमने आँख से रूप को देखा है, तब इसका अर्थ क्या हुआ ? किसी रूप को आपने एक वर्ष पहले देखा, किन्तु वह रूप आज उस रूप में नहीं है, पर रूप का ज्ञान आज भी उसी रूप में है । रूप आता है और चला जाता है, पर रूप का ज्ञान बचा रह जाता है । रूप तो देखने के बाद तत्क्षण नष्ट भी हो जाता है, पर रूप का ज्ञान दीर्घ काल तक बना रह सकता है । रूप नष्ट हो जाता है, पर रूप का ज्ञान क्यों बचा रहता है ? केवल इसलिए कि आत्मा ज्ञान-स्वरूप है ।
आप नाक से गन्ध को सूंघते हैं । किसी भी पदार्थ की सुगन्ध को और दुर्गन्ध को सूंघने से ही जाना जाता है । सूंघने का अर्थ यह है, कि गन्ध का ज्ञान हो जाना । जो गन्ध है, अच्छी है अथवा बुरी है, वह सदा नहीं रहती, नष्ट हो जाती है, पर गन्ध का ज्ञान शेष बचा रह जाता है । हवा के झोके के साथ, कभी सुगन्ध आती है, कभी दुर्गन्ध आती है, और हवा के झोंके के साथ ही वह उड़ जाती है, क्योंकि गन्ध एक विजातीय तत्व है । जो विजातीय तत्व होता है, वह आपके पास नहीं रहता । आपके पास फिर क्या रहा है ? आपके पास तो गन्ध का ज्ञान ही रहा है, क्योंकि आप ज्ञान-स्वरूप हैं ।
मनुष्य भोजन करने बैठता है, उस समय विभिन्न पदार्थों का वह भक्षण करता है, कोई पदार्थ मीठा होता है और कोई पदार्थ खट्टा होता है । पदार्थों के विभिन्न रसों का परिज्ञान जिह्वा से होता है । रस का ज्ञान किसी पदार्थ को चखने के बाद ही होता है । चखना क्या चीज
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