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________________ समाज और संस्कृति प्रदर्शन में उसे आनन्द आता था । देता कम, और दिखावा अधिक करता । जब कोई भिखारी अथवा कोई असहाय व्यक्ति धन प्राप्ति की अभिलाषा से उसके पास आता, तो वह देने से इन्कार तो नहीं करता था, लेकिन उसने दान करने का एक अजीबोगरीब तरीका निकाल रखा था । उसकी दाड़ी बहुत लम्बी थी । कोई भी व्यक्ति जब दान लेने के लिए उसके पास आता था, तो वह अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरता था और हाथ फेरने में जितने बाल दाढ़ी से टूटकर हाथ में आ जाते, उतने ही पैसे वह उस व्यक्ति को देता था, जो दान लेने उसके पास आता था । कभी ऐसा भी होता था, कि दाढ़ी पर हाथ फेरने से एक भी बाल हाथ में न आता, उस स्थिति में दान लेने के लिए आए हुए व्यक्ति को नवाब साहब के द्वार से निराश होकर ही लौटना पड़ता । एक बार की बात है, राजस्थान का एक चारण कवि उस नवाब साहब के दरबार में पहुँचा । चारण कवि ने नवाब की प्रशंसा में बड़ी सुन्दर कविता की रचना की । चारण कवि ने अपनी कविता में नवाब को इस धरती का सूरज और चाँद सब कुछ बना दिया था, पर जब दान का समय आया, तब नवाब साहब कहने लगे कि "सुनाया तो तुमने बहुत अच्छा है, पर अब तकदीर तुम्हारी है । मैं अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरता हूँ, और हाथ फेरते ही जितने बाल आ जायेंगे, उतने ही पैसे मैं तुम्हें दे दूँगा । नवाब साहब ने अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरा तो एक भी बाल उनके हाथ में नहीं आया । हँसकर बोले – “तेरी तकदीर ही हेठी है । तेरी तकदीर में कुछ लिखा ही नहीं है । एक दो बाल भी आ जाते, तो एक दो पैसे मैं तुझे जरूर दे देता, पर तू इतना भाग्य-हीन है, कि मेरी दाढ़ी का एक भी बाल मेरे हाथ में नहीं आया । " चारण ने बड़ी गम्भीरता से नवाब की बात को सुना । थोड़ी देर चुप रहकर हँसी के साथ उसने नवाब से कहा - " आपने मेरी तकदीर की बात खूब कही । आपकी ही तो दाढ़ी और आपका ही हाथ । फिर आपने मेरी तकदीर का फैसला कैसे कर लिया ? यदि मेरी तकदीर का फैसला करना चाहते हैं, तो ऐसा कीजिए कि हाथ मेरा हो और दाढ़ी आपकी हो । मेरी तकदीर का फैसला तभी हो सकता है । " चारण की बात कर्म क्षेत्र की बात है । उसे अपने कर्म पर विश्वास है, कि मैं करूँगा तो मुझे फल अवश्य ही मिलेगा । उसने ठीक ही कहा, १६४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001344
Book TitleSamaj aur Sanskruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size15 MB
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