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________________ समाज और संस्कृति - चाकरी करता है, पंछी किसका काम करता है ? राम जब इन सबको देता है, तब मुझे क्यों नहीं देगा ?" किन्तु मेरे विचार में यह बात नहीं बैठती है, क्योंकि पंछी प्रातःकाल अपने घोंसले से निकलता है और पेट भरने के लिए दिन भर चक्कर काटता रहता है, तब कहीं उसके पेट की पूर्ति हो पाती है । अजगर को भी अपने भोजन के लिए कुछ न कुछ संघर्ष करना ही पड़ता है । किन्तु आलसी व्यक्ति तो रावण के भाई उस कुम्भकर्ण के समान होता है, जो एक बार खा-पीकर छह महीने तक सोता ही रहता था । आप अपने ही जीवन को देखिए, आप अपनी दुकान पर अथवा अपने दफ्तर में कम से कम छह अथवा आठ घण्टे काम करते ही हैं, फिर भी मैं समझता हूँ, कि आपके समय की एक सीमा है, लेकिन एक कीड़ा जो दिन और रात इधर-उधर घूमता रहता है, उसकी मेहनत का क्या ठिकाना है ? वह कीड़ा दिन में ही नहीं, रात को भी, जबकि आप आराम से अपने बिस्तर पर लेटे अथवा सोते रहते हैं, वह बेचारा चक्कर ही काटता रहता है । तब यह कैसे कहा जा सकता है, कि सबके दाता राम ही हैं । यह ठीक है कि अपने कर्म का अपने मन में अहंकार जागृत न हो, इसलिए हम प्रभु की आड़ लेते हैं अथवा कर्म की आड़ लेते हैं, परन्तु प्रभु ही सब कुछ करता है, यह सिद्धान्त ठीक नहीं है । यदि उक्त सिद्धान्त स्वीकार कर लिया जाए, तब तो जीवन में पुरुषार्थ का कुछ भी मूल्य नहीं रह सकेगा । यह एक प्रकार की तमोगुणी मनोवृत्ति है, कि मनुष्य निष्क्रिय भी रहे और फल भी प्राप्त करना चाहे । जो व्यक्ति कर्म के बिना और पुरुषार्थ के बिना फल की आकांक्षा रखता है, वह तमोगुणी व्यक्ति है, उसे हम तमोगुणी मन कहते हैं । दूसरा गुण है-रजोगुण । रजोगुण में व्यक्ति क्रिया-शील रहता है । रजोगुणी व्यक्ति का मन सदा चंचल और डांवाडोल बना रहता है । रजोगुणी व्यक्ति के मन की इच्छाएँ और कामनाएँ कभी उसे शान्ति से नहीं बैठने देती हैं । रजोगुणी व्यक्ति का जीवन चंचल और अशान्त रहता है । यदि शरीर जवाब दे दे, तो भी वह अपने मन से क्रिया-शील बना रहता है । उसका सिद्धान्त एक ही है, कि वह कर्म तभी करेगा, जबकि उसे उस कर्म का फल मिलेगा । वह जो भी कर्म करता है, उसका फल चाहता है । यदि घर वालों के लिए. कर्म करता है, तो वह चाहता है, कि उसके शरीर को सबसे अच्छा खाना-पीना-पहनना मिले । १६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001344
Book TitleSamaj aur Sanskruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size15 MB
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