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समाज और संस्कृति
जाते हैं, उसे हम खो देते हैं । कहने का अभिप्राय यह है, कि जो कुछ हमने दिया वह हमने पा लिया, और जो कुछ हम दे रहे हैं, उसे हम अवश्य ही प्राप्त करेंगे, किन्तु जिस सम्पत्ति का न हमने अपने लिए उचित उपयोग किया और न हम उसको दान ही कर पाए, बल्कि मरने के बाद यहीं छोड़ गये तो वह हमारी अपनी नहीं है, वह हमारे हाथों से नष्ट हो चुकी है ।
मैं आपसे कह रहा था, कि सज्जन व्यक्ति की विद्या और सज्जन व्यक्ति का धन जिस प्रकार परोपकार के लिए होते हैं, उसी प्रकार उसकी शक्ति भी दूसरों के उपकार के लिए होती है । दूसरों को पीड़ा देने के लिए उसकी तलवार कभी म्यान से बाहर नहीं निकलती । जिसका मानस दया और करुणा से आप्लावित है, भला उसकी तलवार की नोंक दूसरे के कलेजे को कैसे चीर सकती है । किन्तु समय पड़ने पर वह दीन, असहाय और अनाथ जनों के अधिकारों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बाजी खेल सकता है । सज्जन पुरुष अपनी शक्ति का प्रयोग अनाथ जनों के अधिकार के संरक्षण के लिए ही करता है । वह कभी भी अपनी शक्ति का प्रयोग अपनी वासनाओं के पोषण के लिए अथवा अपने स्वार्थ के पोषण के लिए नहीं करता । सज्जन पुरुष इस सृष्टि का एक दिव्य पुरुष होता है ।
मैं आपसे यह कह रहा था, कि मानव जीवन बड़ा दुर्लभ है । उसे प्राप्त करना आसान काम नहीं है, किन्तु याद रखिए मानव जीवन प्राप्त करना ही सब कुछ नहीं है, उसकी सफलता तभी है, जब कि मानवोचित सद्गुण भी जीवन में विद्यमान हों । प्रश्न था, कि बलवान् होना अच्छा है अथवा निर्बल होना अच्छा है ? बात यह है, कि सज्जन व्यक्ति का बलवान् होना अच्छा है और दुर्जन व्यक्ति का निर्बल रहना अच्छा है । सज्जन व्यक्ति यदि बलवान् होगा, शक्ति सम्पन्न होगा, तो वह अपने जीवन का भी उत्थान कर सकेगा और दूसरे मनुष्यों के जीवन का उत्थान भी कर सकेगा । दुर्जन व्यक्ति की शक्ति दूसरों के त्रास के लिए होती है, दूसरों के परित्राण के लिए नहीं । धार्मिक व्यक्ति जितना अधिक बलवान् होगा, वह धर्म की साधना उतनी ही अधिक पवित्रता के साथ करेगा । क्रूर एवं दुर्जन व्यक्ति जितना अधिक निर्बल रहेगा, वह उतना ही अधिक
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