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________________ मानव जीवन की सफलता % 3D कुछ मनुष्य विवेकशील होते हैं और कुछ मनुष्य विवेक-विकल होते हैं । इस प्रकार मानव तन पाने वाले मानवों के जीवन की धारा कभी समान रूप से प्रवाहित नहीं होती है, कभी वह समरूप में बहती है, तो कभी विषम रूप में भी बहने लगती है । इस प्रकार मानव-जीवन की सरिता के नाना रूप और विविध परिवर्तन हमारी दृष्टि के सामने आज भी हैं और भूतकाल में भी थे । मानव-जीवन अपने आप में एक महान रहस्य है । ___ भगवती सूत्र' में वर्णन आता है, कि एक राजकुमारी ने, जिसका नाम जयन्ती था, भगवान महावीर से जीवन सम्बन्धी अनेक प्रश्न पूछे थे । जयन्ती अत्यन्त बुद्धिमती और विवेकवती राजकुमारी थी । मालूम होता है, कि उसने धर्म-शास्त्र और दर्शन-शास्त्र का गम्भीर अध्ययन किया था । केवल अध्ययन ही नहीं किया था, बल्कि जीवन के सम्बन्ध में बहुत ही अधिक चिन्तन, मनन और अनुभव भी किया था । राजुकमारी जयन्ती ने भगवान महावीर से स्वर्ग और नरक की बात नहीं पूछी, उसने बात पूछी इस वर्तमान जीवन की । जयन्ती यह भली-भाँति सोचती थी, कि जीवन के समझने पर सब कुछ समझा जा सकता है । अतः उसने जीवन को समझने का ही प्रयत्न किया । इस जीवन को समझने का जितना गम्भीर प्रयत्न किया जाता है, हम उसे सार्थक करने तथा सफल बनाने में उतने ही अधिक सफल हो सकते हैं । राजकुमारी जयन्ती आत्मा और परमात्मा के सम्बन्ध में भी प्रश्न कर सकती थी, पुद्गल और परमाणु की भी चर्चा कर सकती थी, लोक और परलोक के विषय में भी विचार कर सकती थी, किन्तु उसने यह सब कुछ न पूछकर केवल जीवन की बात पूछी । क्योंकि जयन्ती इस तथ्य को भली-भाँति समझती थी, कि इस संसार में जीवन ही सबसे अधिक ज्ञातव्य तत्व है। जीवन को जानने पर सब कुछ जाना जा सकता है और जीवन को न समझने पर कुछ भी नहीं समझा जा सकता । अतः उसने जीवन के व्याख्याकार से जीवन के गूढ़ रहस्य को हीं समझने का प्रयत्न किया । और जीवन भी कौन सा ? नरक-जीवन और देव-जीवन की बात उसने नहीं की, उसने केवल मानव-जीवन की ही बात की । राजुकमारी जयन्ती ने, भगवान महावीर की धर्म सभा में, विनम्र भाव से, जो मानव जीवन सम्बन्धी प्रश्न पूछे थे, उनमें से कुछ प्रश्न और उनके उत्तर आज भी 'भगवती-सूत्र' में उपलब्ध होते हैं । मैं आपसे कह रहा था, कि राजकुमारी जयन्ती के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001344
Book TitleSamaj aur Sanskruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size15 MB
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