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समभावी साधक : गज सुकुमार
स्वतन्त्रता आन्दोलन के समय लोगों के मन में कितना जोश था ? बच्चे चल रहे हैं, युवक और वृद्ध चल रहे हैं, बहनें चल रही हैं, गोली ताने लोग सामने खड़े हैं, पर उन्हें कोई परवाह नहीं । पिस्तौल का निशाना बनाते हैं पर झण्डा हाथ से गिरने नहीं देते । एक का स्थान दूसरा ग्रहण कर लेता है । वहाँ वे किसी लोभ-लालच से नहीं गए । उन्हें मालूम है कि वहाँ फूलों की वर्षा नहीं होगी, गोलियाँ झेलनी होंगी सीने पर । फिर भी वह आजादी का भूखा युवक आगे बढ़ता है मौत का आलिंगन करने कि लिए । तो ऐसी निष्ठा जब तक नहीं होती, तब तक साधक, साधक नहीं हो सकता, वह कुछ नहीं हो सकता ।
महाराष्ट्र के मराठा स्वतन्त्रता की लड़ाई लड़ रहे थे । शिवाजी उनके नेता थे । उनकी गाथाएँ, आत्म-बलिदान की कहानियों, इतिहास के पन्नों पर लिखी हैं । युद्ध चल रहा है, भूख-प्यास की परवाह नहीं है, पर सेनाओ का संचालन सुचारु रूप से करने के लिए भाग-दौड़ जारी है । कहाँ आराम करें ? कहाँ सेज बिछाए ? आराम करना है तो वहीं घोड़े की पीठ है । चलना है तो वही घोड़े की पीठ है, अगर निद्रा का झोंका आया तो भी घोड़े की पीठ है और सोने के लिए भी घोड़े की पीठ है । तो यह अजीब निष्ठा है, चमत्कारिक निष्ठा है । यह निष्ठा जब किसी व्यक्ति में, साधक में, किसी समाज या राष्ट्र में जागृत होती है तो वह निष्ठा उस व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र की दुनिया ही बदल देती है । वे निष्ठावान् व्यक्ति संसार का नक्शा बदल देते हैं, जीवन का नक्शा बदल देते हैं ।
___ आज की ये संस्थाएँ सुनी-सुनी क्यों नजर आ रही हैं ? आज की धार्मिक-क्रियाएँ और जीवन की लडाई के मोर्चे क्यों सने हैं ? कुछ उस पर लड़ते दिखाई भी दे रहे हैं पर वे लड़खड़ाते कदमों से लड़ रहे हैं, सूने मन से लड़ रहे हैं । अगर उनका मन जागृत हो जाए और धर्म की सच्ची प्यास लग जाय तो दृढ़ता आते देर नहीं लगती । गणधर गौतम महावीर के पास पहुँचे तो क्या हुआ ? गुरु ने शिष्य का अन्वेषण नहीं किया । शिष्य ही ढूँढ़ता है गुरु को । ज्ञान-पिपासु या जिज्ञासु के पोस नहीं जाता, जिज्ञासु को ही जाना पड़ता है ज्ञान के पास । इन्द्रभूति गौतम माने हुए विद्वानों में से थे, ४४०० उनके अनुयायी थे । एक पार्टी पहले जाती है भगवान से शास्त्रार्थ करने के लिए और वह वहीं रह जाती है, वापिस लौटने का नाम नहीं । क्रमशः दूसरी और तीसरी पार्टी भी जाती है पर सब जा रहे हैं लौटता कोई नहीं । स्वयं इन्द्रभूति,
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