________________
पर्युषण पर्व की आराधना
राजस्थान के लोक-साहित्य के पृष्ठों को एक बार मैं पढ़ रहा था, पढ़ते-पढ़ते एक पृष्ठ आया और वह पृष्ठ इतनी सुन्दर भावनाओं से भरा हुआ था कि सम्पूर्ण ५०० पृष्ठों की पुस्तक एक ओर और वह एक पृष्ठ एक ओर ! वर्णन चल रहा था, इस पृष्ठ में कि भारत की एक पतिव्रता साध्वी नारी का पति विदेश में गया । महीना गुजरा, दो महीने गुजरे, वर्ष गुजर गया, आया नहीं । बहुत समय बीत जाने के बाद वह लौटा । जब आया तो उस समय उस पतिव्रता सती के मन में कितना उल्लास और कितना आनन्द था ! उसके शरीर का कण-कण, उसके मन का कण-कण आनन्द से नाच उठा । सारे घर में चहल-पहल प्रारम्भ हो गई और घर ने एक नया रूप लेना प्रारम्भ किया । उस समय किसी ने पूछा कि आज क्या बात है ? क्या हो रहा है ? तो उसने कहा
"साजन आया, हे सखी, जाकी जोती बाट ।"
आज मेरा सारा घर हँस रहा है और घर का कोना-कोना उल्लासं से, आनन्द से उछल रहा है, नाच रहा है । घर के जितने भी सदस्य हैं, सब हर्ष से उन्मत्त हैं और एक दूसरे से मिल कर प्रसन्न हो रहे हैं । आज मेरे साजन घर पर आए हैं, उस खुशी में मैं ही नहीं अपितु मेरा सारा घर, मेरा सारा परिवार; जो मेरे जीवन की शान्ति का आधार है और जो सब मेरे घर की शोभा है; वही परिवार हर्ष से नाच उठा है । बात कह दी गई सीधी सादी भाषा में । कविता का नाम लेकर, छन्द का गज लेकर नापने वालों को उसमें कुछ नहीं मिलेगा । लेकिन जो जीवन का फीता लिए हुए हैं, जो भारतीय पारिवारिक जीवन को नापने के लिए प्रेम का गज उठा सकते हैं, जो हमारे भारतीय साहित्य में एक पतिव्रता नारी को अपने पति के प्रति कितनी वफादारी, कितना स्नेह, कितना मधुर सम्बन्ध और कितनी निर्मल भावनाएँ हैं और उनका जो मूर्त रूप है, उसका विचार करने के लिए गहराई में डुबकी लगा सकते हैं; वे उस छोटी-सी देह के अन्दर एक महत्त्वपूर्ण भावना, प्रेम और स्नेह का अजस्र स्रोत मालूम कर सकते हैं ।
जीवन में ऐसे प्रसंग आया करते हैं । सूना-सूना मन उदास और
Jain Education International
-
२७
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org