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________________ पर्युषण-पर्व भगवान महावीर की मूल वाणी के ग्यारह अंगों में यह आठवाँ अंग-सूत्र है । 'अन्तकृत् दशा' इसका नाम है । इसका अर्थ है जिन्होंने अपनी कठोर साधना से संसार-दशा का अन्त कर दिया है, उन दिव्य विभूतियों के जीवन का इसमें सजीव वर्णन किया गया है । प्रस्तुत सूत्र में आठ वर्ग हैं, आठ अध्याय हैं, जो पर्व के इन आठ दिनों में पूरे करने होते हैं । नब्बे महापुरुषों के जीवन को आठ दिनों में सुना सकना सरल काम नहीं है । विशाल सागर को एक लघु गागर में भरने जैसा विकट यह काम है । 'अन्तकृत् दशा' सूत्र में वर्णित सभी महापुरुषों के जीवन परम पवित्र हैं । प्रस्तुत सूत्र के पठन, मनन और श्रवण की परम्परा बहुत प्राचीन काल से चली आ रही है । इस शास्त्र के मूल प्रवक्ता हैं-भगवान महावीर । फिर इसके प्रवक्ता रहे—गणधर सुधर्मा, और श्रोता रहे आयुष्मान् जम्बू । इस प्रकार गुरु-शिष्य परम्परा से यह शास्त्र आज मुझ तक और आप तक आ पहुँचा है । इसके श्रवण से, पठन से और चिन्तन से निश्चय ही आत्मा का कल्याण होता है । शुद्ध भाव से यदि आप इसका श्रवण करेंगे, तो आपके जीवन में से भी वह ज्योति प्रकट हो सकती है, जो उन महापुरुषों के जीवन से कभी हो चुकी थी। मैं आपसे कह रहा था, कि आज पर्युषण-पर्व प्रारम्भ हो चुका है । आत्मसाधना के लिए आपको तैयारी कर लेनी चाहिए । पर्युषण-पर्व में आप लोगों को जो कुछ भी क्रिया-काण्ड करना होता है, वह तो इस पर्व का शरीर है । परन्तु इस पर्व की आत्मा है-समभाव की साधना, क्षमा की साधना और ममता-त्याग की साधना । विवेक और वैराग्य ही वस्तुतः इस पावन पर्व की मूल आत्मा है । इस पर्व की साधना का मुख्य लक्ष्य है-कषायों पर विजय प्राप्त करना । अपने विचारों को सुन्दर संस्कारों में परिणत करना । असत्य से सत्य की ओर जाना, अन्धकार से प्रकाश की ओर जाना । ___मैं आपसे कह रहा था, कि प्रस्तुत पर्युषण-पर्व अनासक्ति-योग की साधना का पुण्य पर्व है । यह पर्व कहता है, कि यदि तुम गृहस्थ हो, तो भरत बनो, जनक बनो, आनन्द बनो और कामदेव बनने का आदर्श अपने सामने रखो । यदि तुम सन्त हो, तो गज सुकुमार बनो, अर्जुन बनो, अतिमुक्त बनो और स्कन्धक बनने का महान् लक्ष्य अपने सामने रखो । यदि तुम श्राविका और साध्वी हो, तो काली, महाकाली बनो - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001335
Book TitleParyushan Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Paryushan
File Size11 MB
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