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पर्युषण-प्रवचन
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वैभव दुःख का मूल है ___संसार में इसी वैभव के लिए अनर्थ और पाप होते हैं । इसी धन के लिए प्रतिदिन लूटमार के समाचार सुनाई पड़ते हैं । आज वह हँस रहा था, किसी ने उसका गला घोंट दिया । आज सायंकाल के समय कुछ यात्री जा रहे थे, अचानक डाकुओं के गिरोह ने उनकी हत्या कर दी और सामान लूट लिया । उस व्यक्ति के इकलौते लड़के का किसी ने खून कर दिया । मानव-मानव के खून का प्यासा बना घूम रहा है । हाँ, तो इस अशांति का मूल कारण क्या है ? आज मानव के हृदय में दया का अभाव है । वह 'आत्मवत्सर्व भूतेषु' का सिद्धान्त भूल गया है । वह यह नहीं सोचता कि जिस प्रकार मुझे सुख-दुख का अनुभव होता है, उसी प्रकार अन्य प्राणियों को भी होता होगा, मेरी ही भाँति सभी प्राणी सुखाकांक्षी हैं ।।
'हाँ, तो मानव वैभव के पीछे पागल बना घूम रहा है । उसे तो धन चाहिए, फिर भले ही वह न्याय के द्वारा आ रहा हो या अन्याय से मिल रहा हो, उसके लिए दूसरों का खून करने में भी वह नहीं हिचकिचाता । ऐसे तो लखपति या करोड़पति बनने की धुन है और यदि वह अमीर भी बन जाये तो इस विराट् विश्व में उसका अस्तित्व ही क्या है ? रावण सोने की लंका का स्वामी था, पर आज उस सोने की लंका का कहीं नाम निशान भी नहीं है । रावण का वह असीम वैभव उसे मृत्यु से नहीं बचा सका । तो वैभव मानव को सुखी नहीं बना सकता । आहार शुद्धि पर ही विचार शुद्धि निर्भर है
यदि सुख और शान्ति की कामना है तो रावणत्व को त्याग कर राम बनना होगा । जब तक मनुष्य का आचार-विचार राम जैसा नहीं बनेगा, तब तक वह उन्नति की ओर अग्रसर नहीं हो सकता । अतः विचारों की शुद्धि अत्यावश्यक है । विचारों की पवित्रता ही हमें आदर्श बनायेगी । विचारों के महल पर ही आचार का महल खड़ा किया जा सकेगा । पर विचारों में पवित्रता कैसे आये ? हमारे महर्षियों ने कहा है । आहार-शुद्धौ विचार-शुद्धिः "विचारों की पवित्रता आहार शुद्धि पर ही अवलम्बित है ।" विचार-शुद्धौ आचार शुद्धिः विचार शुद्धि से ही आचार शुद्ध बनता है और “आचार-शुद्धौ सर्व-शुद्धि : ।" यदि आचरण सुन्दर है तो सम्पूर्ण जीवन ही सुन्दर है । तो इस प्रकार मूल में आहार के प्रति पूरा-पूरा ध्यान देने की आवश्यकता है । पर आज के युग में मानव आहार शुद्धि
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