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पर्युषण-प्रवचन
गृहस्थ हो या साधु, राजा हो या रंक, यदि सदाचार के नियम पर वह ठीक से चल रहा है, उसका जीवन अपने स्वयं के कल्याण के लिए भी है और दूसरों के कल्याण के लिए भी है तो उसी की भारतवर्ष में पूजा होती है । ऐसे सत्य पुरुष के सामने प्रत्येक का सिर झुकता है और हजारों लाखों वर्षों के बाद भी झुकता ही रहता है । इस दृष्टिकोण से यदि आप सोचें तो मालूम होगा कि हमारा जीवन विनय के रूप में कितना महान है ? भगवान महावीर ने और दूसरे विराट् पुरुषों ने विनय का प्रयोग बड़ों के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने के लिए, उनके उच्च आदर्शों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के लिए ही किया है ।
विनय से नैतिक बल की वृद्धि
जैसा कि मनु ने कहा है ' आयुर्विद्यायशोबलम् ।' जो जीवन विनय से युक्त है, उसका यश संसार में फैलता है, उसकी प्रसुप्त समस्त शक्तियाँ जागृत हो उठतीं हैं, उसका नैतिक बल भी विकसित हो जाता है । जिसके पास ये चारों शक्तियाँ हों, उसको किस बात की आवश्यकता रह जाती है ? तो जीवन का मूल विनय है ।
जहाँ विनय नहीं है, वहाँ नैतिक बल का भी अभाव है, जो जीवन का एक विशिष्ट सद्गुण है । ऊपर के विधि-विधान धर्म का शरीर है और नैतिक बल उसकी आत्मा है । आज मन्दिरों में हजारों वर्ष पूर्व की भाँति उसी प्रकार घण्टे बज रहे हैं, पूजा-पाठ और विधि-विधान चल रहे हैं, प्रातः काल मस्जिदों में से बाँग की आवाज सुनाई देती है, धर्म के ऊपर का रूप तो यशावस्थित है, किन्तु नैतिक बल और मानवता की शक्ति का मूल धरातल विलुप्त होता जा रहा है ।
आज व्यक्ति का नैतिक स्तर गिरता जा रहा है । एक व्यक्ति अपने भोग-विलास के लिए समस्त पूँजी पानी की तरह बहा देता है, पर पड़ौसी के पास यदि पैसा नहीं है, भूख और पीड़ा से वह कराह रहा है तो भी वह उसकी सहायता नहीं करता, अपने द्रव्य का उपयोग गरीबों और पीड़ितों के लिए नहीं करता । फिर यदि वह भगवान का भजन करे, चिन्तन करे, ध्यान करे तो आप ही बतलाइए कि कैसे काम चलेगा ? उसकी आत्मा से नैतिकता तो पहले ही खत्म हो चुकी है ।
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