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________________ पर्युषण-प्रवचन तुम इस जीवन में आनन्दित रहो और अगले जीवन में भी आनन्दित रहने की तैयारी करो । जिस प्रकार यहाँ पर त्यौहारों की खुशियों में भुजाएँ उछालते हो, उसी प्रकार अगले जीवन में भी तुम उछालते रहो ।। पर्युषण-पर्व लोगों से कहता है आज तुम्हें जीवन का वह साम्राज्य प्राप्त है, जिस साम्राज्य के बल पर तुम दूसरे हजार-हजार साम्राज्य खड़े कर सकते हो । तुम अपने भाग्य के स्वयं विधाता हो, अपने सम्राट स्वयं हो । तुम्हें अपनी शक्ति का ज्ञान होना चाहिए । मौत के भय से काँपते मत रहो, किन्तु ऐसी साधना करो, ऐसा प्रयत्न करो कि वे भय दूर हो जाएँ और परलोक वह भयंकर जंगल तुम्हारे साम्राज्य का सुन्दर देश बन जाए । पर्व मनाने की यही परम्परा है, पर्युषण की यही फलश्रुति है कि जीवन के प्रति निष्ठाशील, बन कर जीवन को निर्मल बनाओ, इस जीवन में अगले जीवन का प्रबन्ध करो । जब तुम्हें यहाँ की अवधि समाप्त होने पर आगे की ओर प्रस्थान करना पड़े तो रोते बिलखते नहीं, किन्तु हँसते हुए बढ़ो । साधक इस जीवन को भी हँसते हुए जिए और अगले जीवन को चले तो भी हँसते हुए चले–पर्युषण का यह पर्व हम सबको अपना यही संदेश सुना रहा है । पर्युषण-पर्व आत्म-साधना का पर्व है । अन्दर के सुप्त ईश्वरत्व को जगाने का पर्व है । मानव शरीर नहीं है, आत्मा है, चैतन्य है, अनन्त गुणों का अखण्ड पिण्ड है । लोक-पर्व शरीर के आसपास घूमते हैं, किन्तु लोकोत्तर पर्व आत्मा के मूल केन्द्र तक पहुँचते हैं । पर्युषण-पर्व या शरीर से आत्मा में, और आत्मा से अन्तरहित निज शुद्ध सत्तारूप परमात्मा में पहुँचने का लोकोत्तर पर्व है । पर्युषण-पर्व का सन्देश है कि साधकं कहीं भी रहे, किसी भी स्थिति में रहे, परन्तु अपने को न बदले, अपने अन्दर के शुद्ध परमात्म-तत्व को न भूले । - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001335
Book TitleParyushan Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Paryushan
File Size11 MB
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