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________________ गुरु-पूजा महोत्सव कवि-सम्राट रवीन्द्र ने एक गीत लिखा है, जिसका निष्कर्ष है-"मेरे प्रभु! तुम अनन्त संपदा एवं ऐश्वर्य के स्वामी हो। मैं तुम्हारा उत्सव मनाना चाहता हूँ। पर, मेरा यह उत्सव एक क्षुद्र उत्सव होगा, मेरी पूजा की सामग्री अतीव सामान्य होगी।" गुरुदेव रवीन्द्र के श्रद्धास्निग्ध शब्दों में ही हम भी पूज्य गुरुदेव का ८०वाँ जन्मोत्सव 'गुरु-पूजा' के रूप में मना रहे हैं। _प्रस्तुत प्रसंग पर 'ज्ञान-मेरु' एवं 'ध्यान-मेरु' तथा भारतीय कला का अनुपम केन्द्र 'श्री ब्राह्मी कलामंदिरम्' का उद्घाटन तथा 'नेत्र-ज्योति स्वस्ति-मंडप' का शिलान्यास हो रहा है और साथ ही 'अभिनन्दन-ग्रन्थ' का प्रकाशन भी। आम तौर पर अभिनन्दन ग्रन्थ में विद्वान् तथा कुछ राजनीतिज्ञों की ओर से अर्पित प्रशस्तियाँ होती हैं। पूज्य गुरुदेव ने कई विशिष्ट प्रसंगों पर कहा है--"मुझे सहज साधक की तरह रहने दो। गीत गाने हैं, तो उस अनन्त ज्योति महाप्रभु के गाओ, जिसकी पावन-स्मृति में हम सभी दिव्य-ज्योति प्राप्त करने के लिए यत्नशील हैं।" आप सभी जानते हैं, अब तक अनेकानेक महत्त्वपूर्ण संस्थाओं की प्रेरणा एवं प्राण शक्ति पूज्य गुरुदेव रहे हैं। किन्तु, किसी भी संस्था के साथ उन्होंने अपना नाम नहीं जोड़ने दिया है। अतः अभिनन्दन ग्रन्थ की प्रस्तुत नयी परम्परा का श्रीगणेश ही इस ग्रन्थ का गौरव है। गुरुदेव के क्रान्तिकारी तथा पुरोगामी आध्यात्मिक एवं मानवतावादी विचारों का संकलन इस ग्रन्थ में है, जो भगवान् महावीर की जन-कल्याणी देशना को, वाणी को विस्तार देने वाला है। इस अर्थ में प्रस्तुत अभिनन्दन ग्रन्थ विचार-ग्रन्थ है। महाप्राण दर्शनाचार्य महासती श्री चन्दनाजी के ग्रन्थ-सम्पादन के अपूर्व सहयोग का उल्लेख करके मैं उनके महान् योगदान की महार्घता को कम नहीं करूंगा। केवल नाम-स्मरण के साथ अपनी श्रद्धा ही उनके चरणों में समपित करता हूँ। वीरायतन के साधु-साध्वी मण्डल की सेवा में मेरे सभक्ति वन्दन। सबका सहयोग साभार उल्लेखनीय है। वीरायतन के कर्मठ कार्यकर्ता मानद मंत्री श्री छोटेलाल गांधी, कलकत्ता, कोषाध्यक्ष श्री नगीन भाई केशवजी शाह, कलकत्ता तथा उदीयमान नक्षत्र श्री तनसुखराज डागा, कलकत्ता ने ग्रन्थ प्रकाशन जैसे गुरुतर दायित्व तथा अन्य छोटे-बड़े कार्यों का समय पर सम्पादन आदि दायित्व कुशलता से निर्वहन करके, वीरायतन की महती सेवा की है और मेरा कार्यभार विशेषरूप से हल्का किया है। एतदर्थ साधुवादाह हैं सेवानिष्ठ त्रिमूर्ति । भविष्य आप से आशान्वित है। वीरायतन के समस्त सदस्यगण एवं भक्ति भावना-प्रवण उन सभी सहृदय भाई-बहनों के प्रति जिनका समय-समय पर सहर्ष उदार सहयोग वीरायतन के बढ़ते चरणों के साथ रहा है, मैं अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ एवं हादिक प्रसन्नता भेंट करता हूँ। मुझे विश्वास है जिज्ञासू, ममक्ष, चिन्तक एवं प्रेमी पाठकों के लिये यह विचार-ग्रन्थ उपयोगी सिद्ध होगा। अनुभूतिप्रधान जीवनोपयोगी साहित्य-पंक्ति में यह एक महत्त्वपूर्ण विशिष्ट स्थान प्राप्त करेगा। खेलशंकर दुर्लभजी अध्यक्ष वीरायतन-राजगृह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001329
Book TitleSagar Nauka aur Navik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year2000
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size7 MB
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