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________________ प्रतिबिम्ब समय के दर्पण में प्रतिबिम्बित रूप को कोई बुद्धत्व की संज्ञा भले दे दे, किन्तु युग की आशाओं ने, यग के वर्तमान और भविष्य ने, युग की मंगल-कामनाओं ने, भक्तों के अन्तर्भावों ने उन्हें वर्धमान देखा है, जहाँ संत्रस्त, पीड़ित मानवमन विश्राम पाता है, व्याकुल रोती आंखें आनन्द पाती हैं, जन्म-जन्म के मोह और क्षोभ के तुफान शान्त हो जाते है, केवल बौद्धिक तक-प्रवणता, थोथी एवं निस्तेज सिद्ध होती है और समग्र जीवन केवल अर्ध्य बन कर अनायास अर्पित हो जाता है, उन भगवत्स्वरूप सर्वमंगल श्रीचरणों का एक मधुरातिमधुर सम्बोधन है--"गुरुदेव" । गरुदेव का जीवन, अध्ययन, अध्यापन, चिन्तनमनन, साधना, तप सबकुछ सर्वोत्तम है। आज के उस परम भाव-स्थिति में है कि उनका प्रवचन, प्रवचन के लिए नहीं, लेखन, लेखन के लिए नहीं होता है। होता है सत्य की सूक्ष्म गूढ़ ग्रन्थियों के उद्घाटन के लिए, जो समग्र मानवजाति के लिए लोकमंगल की प्रेरणा का दिव्य स्रोत है ! अमर आलोक है! वह दिव्य स्रोत एवं अमर आलोक ही प्रस्तुत मंगलमय गुरु-पूजा महोत्सव पर आप तक पहुँच रहा है। इस पहुँच में न कोई पक्ष है, न विपक्ष है। एक मात्र है शुद्ध, सात्त्विक सर्वमंगल सपक्ष । गुरुदेव का उदबोधन है: धर्म बाहर के क्रियाकाण्ड में, शास्त्रार्थ में नहीं, वह राग-द्वेष से हटकर समता में है, समभाव सच्चा मनुष्य वही है, जो परिवार, समाज, राष्ट्र और मानव-जाति के प्रति अपने दायित्व को प्रामाणिकता से पूरा करता है। • धर्म-क्षेत्र हो या कर्म-क्षेत्र, महान गुरुओं ने निष्काम होने की बोध-देशना दी है, निष्क्रिय होने की नहीं। दुर्भाग्य से आज व्यक्ति निष्काम होने की बजाय निष्क्रिय हो गया है। कोई आश्चर्य नहीं कि कर्म धर्म-शून्य हो जाय। कर्म को धर्ममय बनाना है और धर्म को कर्म-प्रधान । - Elication International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001329
Book TitleSagar Nauka aur Navik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year2000
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size7 MB
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