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________________ न केणई' - - मेरा किसी के साथ कोई वैर नहीं है, विरोध नहीं है । "मित्ती मे सव्व भूएसु" -- सब प्राणियों के साथ मेरी निश्छल एवं निर्मल मंत्री है, पवित्र बन्धता है। यह वह प्रेम गीत है, जिसका स्वर ठीक तरह यदि मानवहृदय में मुखरित हो जाये, तो कोई पराया नहीं रहेगा। सब अपने होंगे। वैर-विरोध के अतीत को भूल जाओ "जो बीत गई, यह बात गई।" अस्तु, प्रेम और मैत्री के अमर देवता प्रभु महावीर के चरणों का स्मरण कर प्रतिदिन प्रात: और सायं भावना करो कि समग्र विश्व मेरा मित्र है. शत्रु कोई है ही नहीं. . मैं सबका हित, सबका कल्याण चाहता हूँ और अन्य सब मेरा हित चाहते हैं... में तन मन धन से सबकी भलाई करूंगा-सबकी भलाई में हो मेरी भलाई है सर्वत्र सब ओर प्रेम है, स्नेह है, सद्भावना है, मंत्री है और इसीलिए सर्वत्र शान्ति है, सुख है, आनन्द है। घृणा और द्वेष को वैर और विरोध की अंधकाराच्छन काली रात समाप्त हो रही है। प्रेम, स्नेह, सद्भावना का स्वर्णिम प्रभात जगमगाता आ रहा है, नये चिन्तन के क्षितिज पर नये विश्व का आलोक फैल रहा है ! जय प्रेम ! जय मैत्री ! . . विश्व रहस्य का सार एक शब्द में Jain Education International For Private & Personal Use Only १५५ www.jainelibrary.org.
SR No.001329
Book TitleSagar Nauka aur Navik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year2000
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size7 MB
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