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"पन्ना समिक्खए धम्म।"
आचार की विभिन्नता है! विचारों की भीड़ है! पंथों की अधिकता है! सर्वमान्य कोई निश्चित मार्ग नहीं है भंते !
भद्र! प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा करनी है और तत्त्व का निर्णय करना है। अन्धे को पथ-दर्शक बनाकर अभीष्ट मार्ग से दूर ही भटक जाओगे। इसलिए अपनी प्रज्ञा पर भरोसा रखो।
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